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ऋणुसूत्रनय अर्थात् तदनुसारी जो वचन विभाग, वह पर्यायनयका मूल आधार है। शब्दनय, समभिरुवनय और एवंभूतनय उत्तरोत्तर सूक्ष्म मेव वाले होनेसे पर्यायनयके अन्तर्गत ही है। नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीन द्रव्याथिकनयके निक्षेप है और भावनिक्षेप पर्यायार्षिक नयके अन्तर्गत है । इस प्रकार इस काण्डमें उत्पाद, व्यय और नोव्यात्मक वस्तुका निरूपण कर नयोंका विवेचन किया है । मनुष्य ओ कुछ को पसः या कहता है वह या तो बमेदकी ओर झुकता है या मेदको ओर । अभेदको दृष्टि से किये गये विचार और उसके द्वारा प्रतिपादित वस्तुको संग्रह या सामान्य कहते हैं। मेदकी दहिसे किया गया विचार और प्रतिपादित वस्तु विशेष कही जाती है। इस प्रकार इस काण्डमें द्रव्यायिक और पर्यायार्थिक नयोंका विश्लेषण किया गया है।
द्वितीय काण्डमें दर्शन और ज्ञानके स्वरूपका कथन करनेके पश्चात् आत्माके सामान्य विशेषात्मक स्वरूपका निरूपण कर द्रव्याथिक और पर्यायाथिक नयोंको घटित किया है। इस द्वितीय काण्ड में ज्ञान और दर्शनके समयमेदका कथन करते हुए केवलोके ज्ञान और दर्शनकै अमेदवादका समर्थन किया है। लिखा है
मणपज्जवणाणतो णाणस्स य दरिसणस्स य विसेसो ।
केवलणाणं पुण दंसणं ति गाणं ति य समाण ।' ज्ञान और दर्शनका विश्लेषण अर्थात कालभेद मनःपर्यय ज्ञान तक है. पर केवलज्ञानके विषय में दर्शन और ज्ञान ये दोनों समान हैं । अर्थात् इन दोनोंका एक काल है ।
इस प्रकार केवलोके नान-दर्शनका अमेदवाद स्थापिस कर क्रमवादी और सहवादीको समीक्षा प्रस्तुत की है। ताकिक शैलीमें पक्ष प्रतिपक्ष स्थापन पुरस्सर विषयका निरूपण किया है । दर्शन और ज्ञान इन दोनोंको परिभाषा एवं विषय वस्तुका विवेचन करते हुए केवलज्ञानके पर्यायोंका कथन किया है।
तृतीय कापड में सामान्य और विशेषरूप वस्तुका कथन है । अतः इसे नेयकाण्ड कहा जा सकता है। सामान्य और विशेष परस्परमें एक दूसरेसे खर्णया भिन्न या सर्वथा अभिन्न नहीं हैं । आचार्यने लिखा है
सामण्णम्मि विसेसो विसेसपक्खे य वयणविणिवेसो । दयपरिणाममण्णं दाए तयं च णियमेइ ।।
१. सन्मतिसूत्र, ज्ञानोदय ट्रस्ट, बहमदाबाद संस्करण, २३ ।
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : २११