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इन पट्टावलियोंसे ज्ञात होता है कि सिद्धसेनके प्रभावसे उज्जयिनी में शिवलिङ्ग-स्फोटनकी घटना घटी थी। पट्टावलियों के कालक्रमके अवलोकनसे प्रतीत होता है कि उज्जयिनीकी इस घटनाका रामावेश विक्रमको १५ वीं शताब्दी से हुआ है । अतः सम्भव है कि सिद्धसेन की इस घटनाको समन्तभद्रकी शिव पिण्डस्फोटनको घटना अनुकरणपर कल्पित किया गया हो ।
पण्डित जुगुल किशोरजी मुख्तारते सिद्धसेन के स्तुत्यात्मक साहित्यका आकलन कर निम्नलिखित निष्कर्ष उपस्थित किया है
"यहाँ 'स्तुतय:' 'यूथाधिपतेः' तथा 'तस्य शिशुः " ये पद खास तौर से ध्यान देने योग्य हैं । 'स्तुतयः' पदके द्वारा सिद्धसेनीय ग्रन्थोंके रूपमें उन द्वात्रिंशिकाओंको सूचना की गयी हैं जो स्तुत्यात्मक हैं और शेष पदोंके द्वारा सिद्धसेनको अपने सम्प्रदायका प्रमुख आचार्य और अपनेका उनका परम्पराशिष्य घोषित किया गया है । इस तरह श्वेताम्बर सम्प्रदायके आचार्यरूपमें यहाँ वे सिद्धसेन विवक्षित हैं जो कतिपय स्तुतिरूप द्वात्रिंशिकाओंके कर्त्ता हैं, न कि वे सिद्धसेन जो कि स्तुत्येतरद्वात्रिंशिकाओंके अथवा खासकर 'सन्मति' सूत्र के रचयिता है । '
उपर्युक्त कथनसे यह स्पष्ट है कि मुख्तार साहब दो सिद्धसेन मानते है ! एक सिद्धसेन वे हैं जो सन्मतिसूत्र और रति है । और दूसरे वे सिद्धसेन, जिन्होंने स्तुतिरूप द्वात्रिंशिकाओंकी रचना की है ।
दिवाकरयतिके रूप में रविषेणाचार्य के पद्मचरितकी प्रशस्ति में भी एक सिद्धसेनका उल्लेख आया है। इसमें इन्हें इन्द्रगुरुका शिष्य, अर्हन् मुनिका गुरु और रविषेणके गुरु लक्ष्मणसेनका दादागुरु बतलाया है ।
आसीदिन्द्रगुरोदिवाकर-यतिः शिष्योऽस्य चान्मुनिः । तस्माल्लक्ष्मणसेन - सन्मुनिरदः शिष्यो रविस्तु स्मृतम् ॥ ३
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यहाँ यह स्मरणीय है कि श्वेताम्बर प्रबन्धों और पट्टावलियोंके समान सिद्धसेन के साथ उज्जयिनीके महाकाल मंदिर में घटित घटनाका उल्लेख दिगम्बर सम्प्रदाय में भी पाया जाता है । सेनगणकी पट्टावलीके निम्न वाक्यमें कहा है
१. पत्र सिद्धसेन स्तुतयो महाश्र अशिक्षितालापकला क्व चैषा । तथाऽपि यूषाधिपतेः पथस्थः स्वलद्गतिस्तस्य शिशूनं शोच्यः ॥
२. अनेकान्त बर्ष ९, किरण ११, पृ० ४५९ । ३. पद्मचरित भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण, १२३०१६७
२०८ : सीर्थंकर महावीर और उनको बाचार्य-परम्परा
- हेमचन्द्र द्वात्रिंशिका |