________________
अग्निपातसे अग्निपात द्वारा आत्मबलिका अनुमान किया है। शतपथब्राह्मण में बताया गया है कि पूरुषमे n सर्वमेघयत्नमें समस्त सम्पत्तिका त्याग कर साधक मृत्युका बरण करने के लिए बन जाता है। परिव्राजककी क्रियाओंका विवेचन करते हए जाबालोपनिषद्म विभिष रूपोंमें किये जानेवाले आत्मघातोंको धार्मिक रूप दिया गया है
'वीराध्वाने वा अनाशके वा अपां प्रवेशे वा अग्निप्रवेशे बा महाप्रस्थाने वा'।'
स्पष्ट है कि अग्निपात, जलपात और अनशनवतद्वारा आत्महत्या करना धार्मिक विधानमें शामिल किया गया है।
हिन्दी विश्वकोषमें आत्मघातोंका निरूपण करते हुए लिखा है कि वैध, अवैध, ज्ञानकृत और अज्ञानकृत में चार भेद आत्मघातके हैं। मनु एवं वृद्धगगन लिखा है कि जब मनुष्य अत्यन्त वृद्ध हो जाये और चिकित्सा करानेपर भी आरोग्यकी सम्भावना न हो, तो शौचादि क्रियाओंके लुप्त होनेकी आशंका उत्पन्न होनेसे, उच्च स्थानसे गिरकर, अग्निमें कूदकर, अनशनसे रहकर या जलमें डूबकर प्राण छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार प्राण छोड़नेपर त्रिरात्रका अशीच माना जाता है।
उपर्युक्त सन्दर्भाशसे स्पष्ट है कि समन्तभद्र द्वारा विवेचित लोक-मूढ़ताएं ब्राह्मण और उपनिषद कालमें प्रचलित थीं। धर्मशास्त्रोंके अशीच प्रकरणमें इन मान्यताओंका समावेश पाया जाता है।
आपगासागरस्नान' की सांस्कृतिक व्याख्या में प्रवेश करने पर ज्ञात होता है कि मोहनजोदड़ोंके प्राप्त भग्नवशेषोंमें उपलब्ध हए स्नानागारोंसे हड़प्पाके सांस्कृतिक जीवनमें जलकी महत्ताका परिचय मिलता है। विद्वानोंने बताया है कि इसका आर्योंके सांस्कृतिक जीवन पर गहरा प्रभाव है । सरोवरों, नदियों और समुद्रोंके जलमें स्नान करनेको प्रथा तथा सर्योदयके पूर्व और भोजनके पूर्व स्नान करनेकी विधिपर धार्मिक मोहर इस बातका प्रमाण है कि सिन्धु घाटीको सभ्यतामें भी स्नानको सांस्कृतिक महत्त्व प्राप्त था। आर्योंके जीवन में नदियोंका नित्य चहता हआ निर्मल जल ही उनके लिए स्वर्गकी पवित्रता एवं पाचनताका परिचायक था। सिन्धु, वितस्ता, चन्द्रभागा, इरावती, विपासा, शत्तद्रु, यमुना, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र आदि नदियोंने धार्मिक प्रेरणाके कारण ही १. निर्णयसागर प्रेस, बम्बईसे सन् १९२५ में प्रकाशित ईशायष्टोत्तरशतोपनिषयः,
पृ० १३१ । २. हिन्दी विश्वकोश, द्वितीय भाग, आत्मघातशब्द । ३. Indus civilization by M wheeler. Page 282-284
.
१९४ : तीर्थकर महावीर और उनकी बाचार्य-परम्परा