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समस्तमोरेखि रश्मिभिनम् " पदसे राजा शिवकोटिके शिवालय में घटित ह घटनाका संकेत प्राप्त होता है ।
समस्त भवने बाद (शास्त्रार्थ ) द्वारा जैन सिद्धान्तोंका प्रचार किया था । श्रवणवेलगोलके अभिलेखोंके अनुसार पाटलिपुत्र, ढक्क, मालव, कांची आदि देशोंमें उन्होंने शास्त्रार्थं कर जिनसिद्धान्तोंकी श्रेष्ठता प्रतिपादित की थी। इस ओर भी उनका संकेत "स्व-पक्ष सौस्थित्य मदाऽवलिप्ता बाक्सिंह-ना देविमदा वभूवुः " पद्यांशसे मिलता है ।
शान्तिनाथतीर्थंकरने चक्रवतित्वपद प्राप्त किया था और उन्होंने षट्खण्डकी दिग्विजयकर समस्त राजाओं को करद बनाया था। उनके राज्यकालमें प्रजा अत्यन्त सुखी और समृद्ध थी । इस बातकी सूचना निम्नलिखित पद्यांशोंसे प्राप्त होती है
"चक्रण यः शत्रु-भयङ्करंण जित्वा नृपः सर्व-नरेन्द्र-चक्रम्"
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" विधाय रक्षा परतः प्रजानां राजा चिरं योऽप्रतिम प्रतापः * मल्लिजिन आजन्म ब्रह्मचारी थे। उनकी गणना बालयतियोंमें है । इसी प्रकार अरिष्ट नेमिको भी बालयति कहा गया है । इन दोनों तीर्थंकरोंके स्तवनमें 'महर्षि' या 'ऋषि' शब्दके प्रयोग आये है, जो इन तीर्थंकरोंके बालयतित्वको अभिव्क्त करते हैं ।
पार्श्वनाथस्तोत्रमें तीर्थंकर पार्श्वनाथके मुनिजीवनमें तपश्चर्या करते समय मेरी कमठ द्वारा किये उपसर्ग तथा पद्मावती और घरणेन्द्र द्वारा उसके निवारणका वर्णन निम्नलिखित पत्रोंमें किया है
"तमाल-नीलेः सघनुस्तडिद्गुणेः प्रकीर्ण- मीमाशनि - वायु-वृष्टिभिः । बलाहकैवैरि-वरुपद्रुतो महामना यो न चचाल योगतः ॥ बृहत्फणा-मण्डल- मण्डपेन यं स्फुरतडित्पिङ्ग-कचोपसर्गिणम् । जुगूह नागो धरणो घराघरं विराग-संध्या-सहिदम्बुदो यथा " || इस प्रकार इस स्तोत्र-काव्य में प्रबन्धात्मक बीजसूत्र सर्वत्र विद्यमान हैं ।
१. चन्द्रप्रभजिन स्तवन पद्य २
२. बही, वद्य रे ।
३. पा ंतिजिन स्तवन, पद्म २ ।
४. वही पक्ष १ ।
५. पार्श्वनाथ स्तवन पद्य १, २ ।
१८६ तीर्थकर महावीर और उनकी खाचार्य परम्परा