________________
श्रीसमन्तभद्र मुनीश्वर सरस्वतीको स्वच्छन्द विहारभूमि थे | उनके वचनरूपी वञ्ज्ञ्ज्र के निपातसे प्रतिपक्षी सिद्धान्तरूपी पवंतोंको चोटियाँ चूर-चूर हो गयी थीं । उन्होंने जिनशासनकी गौरवमयी पताकाको नीले आकाश में फहरानेका कार्य किया था। परवादी- पंचानन बर्द्धमानसूरिने समन्तभद्रको 'महाकवीश्वर' और 'सुतर्कशास्त्रामृतसागर' कहकर उनसे कवित्वशक्ति प्राप्त करनेकी प्रार्थनाकी है
समन्तभद्रादिमहाकवाश्वराः कुवादिविद्या जयलब्ध कीर्त्तयः । सुतर्कशास्त्रामृत्तसारसागरा मयि प्रसीदन्तु कवित्वकांक्षिणि' | श्रवणबेलगोलाके शिलालेख न० १०५ में समन्तभद्रकी सुन्दर उक्तियों को वादरूपो हस्तियोंको बस करनेके लिए बच्चाकुंश कहा गया है तथा बतलाया हैं कि समन्तभद्र के प्रभावसे यह सम्पूर्ण पृथ्वी दुर्वादों की वार्तासे भी रहित हो गयी थी.
समन्तभद्रस्स चिराय जीयाद्वादी भवज्रांकुशसूक्तिजाल: । यस्य प्रभावात्सकलावनीयं वन्ध्यास दुर्व्वादुकवार्त्तयापि ॥ स्यात्कार मुद्रित समस्त पदार्थ पूर्ण लो-हमखिलं स खलु व्यनक्ति । दुब्बादुकोक्तितमसा पिहितान्तराल सामन्तभद्र-वचन- स्फुटरत्नदीपः ॥ २ ज्ञानार्णवके रचयिता शुभचन्द्राचार्यते समन्तभद्रको 'कवीन्द्र भास्वान' विशेषय के साथ स्मरण करते हुये उन्हें श्रेष्ठ कवीश्वर कहा है
समन्तभद्रादिकवीन्द्र भास्वतां स्फुरन्ति यत्रा मलसूक्ति रश्मयः । व्रजन्ति खद्योत्तवदेव हास्यतां न तत्र किं ज्ञानलयोद्धता जनाः ||
अजित सेनको 'अलंकारचिन्तामणि' और ब्रह्म अजितके 'हनुमच्चरित्' एवं श्रवणबेलगोलाके अभिलेख नं० ५४ और अभिलेख नं० १०८ में समन्तभद्रका स्मरण महाकविके रूपमें किया गया है ।
इस प्रकार जैन वाङ्मय में समन्तभद्र पूर्ण तेजस्वी विद्वान्, प्रभावशाली दार्शनिक, महावादिविजेता और कवि वेधा के रूपमें स्मरण किये गये हैं । जैनधर्म और जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ विद्वान होनेके साथ तर्क, व्याकरण, छन्द, अलंकार एवं काव्य-कोषादि विषयोंमे पूर्णतया निष्णात थे। अपनी अलौकिक प्रतिभा द्वारा इन्होंने तात्कालिक ज्ञान और विज्ञानके प्रायः समस्त विषयोंको आत्मसात्
१. वाराङ्गचरित, वर्तुमानसूरि प्रकाशक रावजी सखाराम दोशी, ११७ ।
२. जैनशिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या १०५, पद्य १७ - १८ । ३. ज्ञानार्णव १ १४ १
श्रुतघर और सारस्वताचार्य १७३