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द्वितीय परिच्छेद सारस्वताचार्य
सारस्वताचायोंने धर्म-दर्शन, आचार-शास्त्र, न्याय-शास्त्र, काव्य एवं पुराण प्रभृति विषयक ग्रन्थों की रचना करने के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण मान्य ग्रन्थोंकी टोकाऍ, भाष्य एवं वृत्तियाँ भी रची हैं। इन आचार्योंने मौलिक ग्रन्थप्रणयनके साथ आगमकी वशवर्तिता और नई मौलिकताको जन्म देनेकी भीतरी खेचेनीसे प्रेरित हो ऐसे टीका ग्रन्थोंका सृजन किया है. जिन्हें मौलिकताकी श्रेणी में परिगणित किया जाना स्वाभाविक है । जहाँ श्रुतधराचार्यांने दृष्टि-प्रवाद सम्बन्धी रचनाएँ लिखकर कर्मसिद्धान्तको लिपिबद्ध किया है, वहाँ सारस्वताचार्योंने अपनी अप्रतिम प्रतिभा द्वारा बिभिन्नविषयक वाङ्मयकी रचना की है । अतएव यह मानना अनुचित नहीं है कि सारस्वताचार्यों द्वारा रचित वाङ्मयकी पृष्ठभूमि अधिक विस्तृत और विशाल है ।
सारस्वताचायोंमें कई प्रमुख विशेषताएं समाविष्ट है। यहाँ उनकी समस्त
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