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है, तस्वार्थ सूत्रकारपिच्छको नहीं । गृद्धपिच्छ उमास्वामि कुन्दकुन्दान्वयमें ये हैं और ये कुन्दकुन्दाचार्यके उत्तराधिकारी भी हैं ।
समय-निर्धारण
इनका समय नन्दिसंघको पट्टावलिके अनुसार वीर-निर्वाण सम्वत् ५७१ है, जो कि दि० सं० १०१ आता है । 'विद्वज्जनबोधक' में निम्नलिखित पद्य आया है
वर्ष सप्तश चैव सप्तत्या न विस्मृतौ । उमास्वामिमुनिर्जातः कुन्दकुन्दस्तथैव च ॥
अर्थात् वीर निर्वाण संवत् ७७० में उमास्वामि मुनि हुए, तथा उसी समय कुन्दकुन्दाचार्य भी हुये । नन्दिसंघकी पट्टावलिमें बताया है कि उमास्वामी ४० वर्ष ८ महीने आचार्य पदार प्रतिष्ठित रहे । उनकी आयु ८४ वर्षकी थी और विक्रम संवत् १४२ में उनके पट्टपर लोहाचार्य द्वितीय प्रतिष्ठित हुए। प्रो० हानंले', डा० पिटर्सन' और डा० सतीशचन्द्र ने इस पट्टावलिके अधारपर उमास्वादिकां रेड की प्रथम शताब्दीका विद्वान माना है ।
''विद्वज्जनबोधक' के अनुसार उमास्वातिका समय विक्रम सम्वत् ३०० भाता है और वह पट्टावलिके समय से १५० वर्ष पीछे पड़ता है।
इन्दिअपने श्रुतावतार में ६८३ वर्षको श्रुतवर आचार्यों की परम्परा दी है और इसके बाद अंगपूर्व के एकदेशवारी विनयवर, श्रीदत्त और अद्दत्तका नामोल्लेख कर नन्दिसंघ आदि संघों की स्थापना करनेवाले अहंवलिका नाम दिया है। श्रुतावतारमें इसके पश्चात् माघनन्दि, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतवलिके उल्लेख हैं। उसके बाद कुन्दकुन्दका नाम आया है। अतः आचार्य गृद्धपिच्छ कुन्दकुन्दके पश्चात् अर्थात् ६८३ वर्षके अनन्तर हुए हैं। यदि इस अनन्तरकालका १०० वर्षे मान लिया जाये, तो वीर निर्वाण सम्वत् ७८३ के लगभग आचार्य गृद्धपिच्छका समय होगा ।
यद्यपि श्रुतधर आचार्यो की परम्परा का निर्देश घवला, आदिपुराण', नन्दि
१. सर्वार्थसिद्धि प्रस्तावना, पृ० ७८ से उद्धृत ।
२. And ant, XX P. 341, 351.
३. Peerrsons fourth oreport on Sanskrit manuscripts P. XVI. ४. History of the Mediaval school of Indian Logic P. 8, 9.
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६. धवला पुस्तक ९, पृ० १३०.
६. आदिपुराण २।१३७.
१५२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
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