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और बादमें यह पाठ चल पड़ा हो ।'
अतः सत्त्वार्थ अथवा तत्त्वार्थसूत्र और तत्त्वार्थाधिगमभाष्य दो पृथक्-पृथक् रचनाएँ हैं। तत्त्वार्थ सर्वार्थसिद्धिसे पूर्ववर्ती और तत्त्वार्थाधिगमभाष्य उससे उत्तरवर्ती रचना है। अतएव तत्त्वाधिगमभाष्यके कर्ता वाचक उमास्वाति रहे होंगे। पर मल तत्वार्थसत्रके कर्ता गपिच्छाचार्य हैं। इस नामका उल्लेख नवीं शताब्दीके आचार्य बोरसेन और विद्यानन्द जैसे आचार्योके साहित्यमें मिलता है। उत्तरकालमें अभिलेखों और ग्रन्थों में उमास्वामो और उमास्वाति इन दो नामोंसे भी इनका उल्लेख किया गया है। लगभग इसी समय श्वेताम्बर सम्प्रदायमें हुए सिद्धसेन गणिके उल्लेखोंसे तत्त्वार्थाधिगमभाष्यका रचयिता वाचक उमास्वातिको माना गया और इन्हें ही तत्त्वार्थसूत्रका रचयिता भी बता दिया गया । पर मूल और भाष्य दोनोंका अन्तःपरीक्षण करनेपर वे दोनों पृथक्-पृथक् दो विभिन्नकालीन कर्तृक सिद्ध होते हैं, जैसा कि ऊपरके विवेचनसे प्रकट है। गुरुपरम्परा
गृपिच्छाचार्य किस मन्वयमें हुए, यह विचारणीय है ! नन्दिसंघको पट्टावलि और श्रवणबेलगोलाके अभिलेखोंसे यह प्रमाणित होता है कि गृद्धपिच्छाचार्य कुन्दकुन्दके अन्वयमें हुए हैं। नन्दिसंघकी पट्टावलि विक्रमके राज्याभिषेकसे प्रारम्भ होतो है । वह निम्न प्रकार है
१ भद्रबाहु द्वितीय (४), २ गुप्तिगुप्त (२६), ३ माघनन्दि (३६), ४ जिनचन्द्र (४०), ५ कुन्दकुन्दाचार्य (४९), ६ उमास्वामि (१०१), ७ लोहाचार्य (१४२), ८ यशःकीति (१५३), ९ यशोनन्दि (२११), १० देवनन्दि (२५८), ११ जयनन्दि {३०८), १२ गुणनन्दि (३५८), १३ वच्चनन्दि (३६४), १४ कुमारनन्दि (३८६), १५ लोकचन्द (४२७), १६ प्रभाचन्द्र (४५३), १७ नेमिचन्द्र (४७२), १८ भानुनन्दि (४८७), १९ सिंहनन्दि (५०८), २० वसुनन्दि (५२५), २१ बीरनन्दि (५३१), २२ रत्ननन्दि (५६१), २३ माणिक्यनन्दि (५८५), २४ मेधचन्द्र (६०१), २५ शान्तिकोति (६२७), २६ मेरुकोति (६४२),।'
उपर्युक्त पट्टालिम आया हुआ गुप्तिगुप्तका नाम अर्हलिके लिये आया है । अन्य प्रमाणोंसे सिद्ध है कि नन्दिसंघकी स्थापना अहवालने की थी, और इसके प्रथम पट्टधर आचार्य माघनन्दि हुए। इस क्रमसे गृपिच्छ नन्दिसंघके १. स० सि. प्रस्तावना, पृ० ६८ । २. जैनसिदान्त भास्कर, भाग १, किरण ४, पृ० ७८ ।
१५० : तीर्थकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा