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१३. सीलपाड-४० गाथाएं हैं । शोल ही विषयासक्तिको दूरफर मोक्षप्राप्तिमें सहायक होता है। जोव-दया, इन्द्रिय-दमन, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, असन्तोष, सम्यग्दर्शन, सम्यगशान और तपको शीलके अन्तर्गत परिगणित किया है।
१४. रयणसार-इस ग्रंथमें रत्नत्रयका विवेचन है । १६७ पध हैं। और किसी-किसी प्रतिमें १५५ पद्य भी मिलते हैं। गृहस्थ और मुनियोंको रत्नत्रयका पालन किस प्रकार करना चाहिए, यह इसमें वर्णित है। डॉ० ए० एन० उपाध्ये इस ग्रन्थको गाथा-विभेदविचार, पुनरावृत्ति, अपभ्रंशपद्योंकी उपलब्धि एवं गण-गच्छादिके उल्लेख मिलनेसे कुन्दकुन्दके होनेमें आशंका प्रकट करते हैं। वस्तुतः शैलीको भिन्नता और विषयोंके सम्मिश्रणसे यह ग्रन्थ कुन्दकुन्द रचित प्रतीत नहीं होता । परम्परासे यह कुन्दकुन्दद्वारा प्रणीत माना जाता है ।
१५. सिद्ध-भक्ति-यह स्तुतिपरक अभ्य है । १२ गाथाओंमें सिद्धोंके गुण-भेद, सुख, स्थान, आकृति और सिद्धि-मार्गका निरूपण किया गया है । इसपर प्रभाचन्द्राचार्यको एक संस्कृत टीका है। इस टोकाके अन्तमें लिखा है कि संस्कृतकी सब भक्तियाँ पूज्यपादस्वामी द्वारा विरचित हैं और प्राकृतको भक्तियां कुन्दकुन्द आचार्य द्वारा निर्मित' हैं।
१६ सुवति-इस भक्तिपाठमें ११ गाथाएं हैं। इसमें आचारांग, सूत्रकृतांग आदि द्वादश अंगोंका भेद-प्रभेद सहित उल्लेख करते हुए उन्हें नमस्कार किया गया है। साथ ही १४ पूर्वोमेंसे प्रत्येकको वस्तुसंख्या और प्रत्येक वस्तुके प्राभूतोंकी संख्या भी दी है।
१७. चारित्त-भत्ति-१०अनुष्टुप गाथाछन्द हैं। सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात नामके चारित्रों, अहिंसादि २८ मूलगुणों, दस धर्मो', त्रिगुप्तियों, सकलशोलों, परीषहोंके जय और उत्तरगुणोंका उल्लेख करते हुए मुक्तिसुख देनेवाले चारित्रको भावना की गयी है ।
१८. जोइभति-२३ गाथाओंमें योगियोंकी अनेक अवस्थाओं, ऋद्धियों, सिद्धियों एवं गुणोंके साथ उन्हें नमस्कार किया गया है।
१९. आइरियभत्ति-इसमें १० गाथाएं हैं और इनमें आचार्योंके उत्तम गुणोंका उल्लेख करते हुए उन्हें नमस्कार किया है।
१. संस्कृताः सर्वा विभक्तयः पूज्यपादस्वामिकताः प्राकृतास्तु कुन्दकुन्दाचार्यकृताः ।
--प्रभाषन्द्रटीका, अन्तिम बंश ।
श्रुतपर और सारस्वताचार्य : ११५