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४. मियसार - आध्यात्मिक दृष्टिसे यह ग्रन्थ भी महत्त्वपूर्ण हैं । इसमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्रको नियमसे मोक्ष प्राप्तिका मार्ग कहा है । अतएव सम्यग्दर्शनादिका स्वरूप कथन करते हुए उसके अनुष्ठान करने एवं मिथ्यादर्शनादिके त्यागका विधान किया है। इसपर पद्मप्रभमलधारीदेवकी संस्कृसटोका भी उपलब्ध है ।
५. बारस- अणुवेक्खा ( द्वावशानुप्रेक्षा ) – इसमें अध्रुव अनित्य, मशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार लोक अशुचिव तसतसं निश और बोधिदुर्लभ इन बारह भावनाओंका ९१ गाथाओं में वर्णन है । संसार से विरक्ति प्राप्त करनेके लिए यह रचना अत्यन्त उपादेय है ।
६. वंसणपाहुड – इस लघुकाय ग्रन्थ में धर्मके सम्यग्दर्शनका ३६ गाथाओं में विवेचन किया गया है। सम्यग्दर्शनसे भ्रष्ट व्यक्तिको निर्वाण प्राप्त नहीं हो सकता है 1
७. वारित पाहुड – सम्यक्चारित्रका निरूपण ४४ गाथाओंमें किया गया है । सम्यक् चारित्रके दो भेद किये हैं- सम्यक्त्वचरण और संयमचरण । संयमचरणके सागार और अनगार इन दो भेदों द्वारा श्रावक और मुनि धर्मका संक्षेपमें निर्देश किया है ।
८. सुतपा - २७ गाथाओं में आगमका महत्त्व बतलाते हुए उसके अनुसार चलनेकी शिक्षा दी गयी है ।
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बोहपाड – ६२ गाथाएं हैं। इनमें आयतन, चैत्यगृह, जिनप्रतिमा, दर्शन, जिनविम्ब, जिन मुद्रा, आत्मज्ञान, देव, तोर्थ, अर्हन्त और प्रथा इन ग्यारह बातोंका बोध दिया गया है।
१०. भाव पाहुड - १६३ गाथाओं में चित्त शुद्धिकी महत्ताका वर्णन किया है । बताया है कि परिणामशुद्धिके बिना संसार परिभ्रमण नहीं रुक सकता है और न बिना भावके कोई पुरुषार्थ ही सिद्ध होता है । इसमें कर्मकी अनेक महत्वपूर्णं बातोंका विवेचन आया है ।
११. मोक्लपाहुड – इस ग्रन्थ में १०६ गाथाओंमें मोक्षके स्वरूपका निरूपण किया गया है। आत्मा के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा — इन तीन भेदोंका स्वरूप समझाया है । मोक्ष- परमात्म-पदकी प्राप्ति किस प्रकार होती है इसका निर्देश किया है ।
१२. लिंगपाहुड – इस लघुकाय ग्रन्थ में २२ गाथाएँ हैं । श्रमणलिंगको लक्ष्य कर मुनि धर्मका निरूपण किया गया है ।
११४ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा