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पुष्टि भी अन्य प्रमाणोंसे नहीं होती । अतएव कुन्दकुन्दको ई० सन् प्रथम शताब्दीका विद्वान् स्वीकार किया जा सकता है ।
आधुनिक विचारक डॉ० ज्योति प्रसादजीने विभिन्न मतों की समीक्षा करते हुए निम्नलिखित निष्कर्ष उपस्थित किया है - All this Shows that he may Safely be assigned to the calry part of the first century A. 1, or, to be exact, to 8 B. CA. D. 44.
अर्थात् इस जादाउपर कुन्यकुपकाराप ई० सन्की प्रथम शताब्दी आता है । कुम्कुम्बकी रचनाएँ
दिगम्बर साहित्य के महान् प्रणेत्ताओंमें कुन्दकुन्दका मूर्धन्य स्थान है । इनकी सभी रचनाएँ शौरसेनी प्राकृतमें हैं । १. प्रवचनसार, २. समयसार और ३, पंचास्तिकाय ये तीन ग्रन्थ विश्रुत हैं और तत्त्वज्ञानको अवगत करनेके लिए कुञ्जी हैं। शेष रचनाओंका भी आध्यात्मिक दृष्टिसे विशेष महत्त्व है ।
१. प्रवचनसार
यह ग्रन्थ अमृतचन्द्रसूरि और जयसेनाचार्यकी संस्कृतटीकाओं सहित रायचन्द्र शास्त्रमाला बम्बई द्वारा प्रकाशित है । इसमें तीन अधिकार हैं-ज्ञान, शेय और चारित्र | ज्ञानाधिकारमें आत्मा और ज्ञानका एकत्व एवं अन्यत्व, सर्वज्ञकी सिद्धि, इन्द्रिय और अतीन्द्रिय सुख, शुभ, अशुभ और शुद्धोपयोग तथा मोक्षय आदिका प्ररूपण है । ज्ञेयाधिकार में द्रव्य, गुण, पर्यायका स्वरूप, सप्तभंगी, कर्म और कर्मफलका स्वरूप, मूर्त और अमूर्त द्रव्योंके गुण, कालादिकके गुण और पर्याय, प्राण, शुभ और अशुभ उपयोग, जीवका लक्षण, जीव और पुद्गलका सम्बन्ध, निश्चय और व्यवहारका अविरोध एवं शुद्धात्मा आदिका प्रतिपादन है | चारित्र अधिकार में श्रामण्यके चिह्न, छेदोपस्थापक भ्रमण, छेदका स्वरूप युक्त आहार, उत्सर्ग और अपवाद मार्ग, आगमज्ञानका लक्षण और मोक्षतत्त्व आदिका कथन किया है ।
आचार्य अमृतचन्द्रको टीकाके अनुसार इसमें २७५ गाथाएं हैं और जयसेनकी टीका अनुसार ३१७ हैं । इन बढ़ी हुई गाथाओंका तीन वर्गों में विभाजन किया जा सकता है
१. नमस्कारात्मक
२. व्याख्यानविस्तारविषयक
३. अपरविषयविज्ञापनात्मक
1. The jaina Sources of the history of ancient India P. 124 = 125.
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : १११