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समय-निर्धारण ___ आचार्य कुन्दकुन्दके समय पर विचार करने वालोंमें श्री पं० नाथूरामजी प्रेमी; श्री पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार; डॉ० के०बी० पाठक, प्रो० ए० चक्रवर्ती,
और डॉ० ए० एन० उपाध्येके नाम उल्लेखनीय हैं। डॉ० उपाध्येने सभी मतोंकी समीक्षा कर अपने मतको संस्थापना की है। हम यहाँ संक्षेपमें उक्त विद्वानोंके मत्तोंको विवेचना करेंगे।
प्रमीजीने इन्द्रनन्दिके श्रुतावतारके आधार पर बताया है कि गुणधर, यतिवृषभ और उच्चारणाचार्य द्वारा रचित गाथासूत्र, चूणिसूत्र और उच्चारणसूत्रों के रूपमें 'कसायपाहुड' निबद्ध हुआ। धरसेनकी परम्परामें पुष्पदन्त और भूतबलिने पट्खण्डागमकी रचना की । इन दोनों ग्रन्थोंको कुन्दकुन्दपुरमें पमनन्दि मुनिने गुरुपरम्परासे प्राप्त किया और षट्खण्डागमके प्रथम तीन खण्डों पर १२००० इलोकप्रमाण परिकर्मनामक ग्रन्थको रचना की। प्रेमीजीने इस आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि वीरनिर्वाण संवत् ६८३ के पश्चात् कुन्दकुम्द हुए हैं। धरसेन, उच्चारणाचार्य आदिके सक्यको पचास-पचास वर्ष मान लेने पर कुन्दकुन्दका समय विक्रमको तीसरी शताब्दीका अन्तिम चरण सिद्ध हाता है।
प्रेमोजीने एक अन्य प्रमाण यह भी दिया है कि ऊज्जयन्तगिरिपर श्वेताम्बरोंके साथ कुन्दकुन्दका ही शास्त्रार्थ हुआ था। उनके सुत्तपाहुबसे भी यह प्रकट है। देवसेनके दर्शनसारके अनुसार विक्रमकी मृत्युके १३६ वर्ष बीतनेपर यह संधभेद हुआ। प्रेमोजीने इसे शालिवाहन शकाब्द मानकर १३६ + १३५ - २७१ विक्रम सं० में संघभेद माना है । इस कालका श्रतावतारमें उल्लिखित समयके साथ समन्वय हो जाता है । अतएव प्रेमोजीके मतानसार कुन्दकुन्दका समय विक्रमकी तृतीय शताब्दोका अन्तिम चरण है। ___ डा. पाठकको' राष्ट्रकूट नरेश गोविन्दराज तृतीयके दो ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं। उनमेंसे एक शक सं० ७१९ का है और दूसरा शक सं०७२४ का है। इनमें कोण्डकोन्दान्वयके तोरणाचार्य के शिष्य पुष्पनन्दिका तथा उसके शिष्यका निर्देश किया है। डॉ०पाठकका अभिमत है कि प्रभाचन्द्र शक सं० ७१९ में और उनके दादागुरु तोरणाचार्य शक सं० ६०० में हुए होंगे। कुन्दकुन्दको इनसे डेढ़ सौ वर्ष पूर्व माना जा सकता है। अतएव कुन्दकुन्दका समय शक सं० ४५० के लगभग है।
डॉ. पाठकने अपने इस अनुमानका समर्थन एक अन्य आधारसे भी किया है। १. सममप्राभूत, काशी संस्करण, संस्कृत-प्रस्तावमा ।
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : १०७