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कुन्दकुन्दगणी येनोजयन्तगिरिमस्तके ।
सोऽवताद् वादिता ब्राह्मी पाषाणघटिता कलौ ।' जिन्होंने कलिकालमें ऊर्जयन्त गिरिके मस्तक पर-गिरनार पर्वतके ऊपर पाषाणनिर्मित ब्राह्मीकी मूर्तिको बुलवा दिया।
इसी तरहका उल्लेख शुभचन्द्रको गुर्वावलिके अन्तग निबद्ध उन दो पद्योंमें भी है, जो निम्न प्रकार हैं -
पदादी को लादारामानणी। पाषाणघटिता येन वादिता श्रीसरस्वती ।। उज्जयन्तगिरौ तेन गच्छः सारस्वतोऽभवत् ।
अतस्तस्मै मुनीन्द्राय नमः श्रीपद्मनन्दिने। बलात्कारगणाग्रणी पद्मनन्दो गुरु हुए । जिन्होंने ऊर्जयन्तगिरि पर पाषाणनिर्मित सरस्वतोकी मूर्तिको वाचाल कर दिया था। उससे सारस्वत गच्छ हुआ। अतः उन पद्यनन्दो मुनोन्द्रको नमस्कार हो।
कवि वृन्दावनके एक उल्लेखसे भी ज्ञात होता है, कि कुन्दकुन्दस्वामी संघ सहित गिरनारकी यात्राके लिए गये। वहां पर उन दिनों श्वताम्बरोंका भी संघ ठहरा हुआ था। दोनों संघोंमें वादविवाद हुआ और इसकी मध्यस्थता अम्बिका देवाने को। उसने प्रकट होकर कहा कि दिगम्बर निग्रंथ पन्थ ही सच्चा है।
श्री नाथूरामजी प्रेमीने 'तीर्थोके झगड़ों पर ऐतिहासिक दृष्टिसे विचार' शीर्षक निबन्धमें बताया है-''जान पड़ता है, गिरनार पर्वत पर दिगम्बरों और श्वेताम्बरोंके बीच वह विवाद कभी न कभी अवश्य हुआ, जिसका उल्लेख धर्मसागर उपाध्यायने किया है । यह कोई ऐतिहासिक घटना अवश्य है, क्योंकि इसका उल्लेख दिगम्बर साहित्यमें भी एक दूसरे रूपमें मिलता है ।"3 ।
इस सबपर विचार करनेसे प्रतीत होता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बरोंका शास्त्रार्थ तो अवश्य हुआ है, पर यह शास्त्रायं नन्दिसंघके आचार्य पचनन्दि, जिनका अपर नाम कुन्दकुन्द था, के साथ नहीं हुआ है। यह अन्य पप्रनन्दिके साथ हुआ होगा, जिनका समय विक्रमको १२वीं शताब्दो है।
१. पाण्डवपुगग। 2. जैनसिद्धान्त भास्कर, भाग १, किरण ४, पृ. ५८ । ३. बेल साहित्य और इतिहास, प्रथम संस्करण, पृ. २४५ ।
१०६ : सीकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा