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नन्दिने भी अपने भूतावतार में कौण्ड पचनकि निर्देश किया है ? श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० ४० में तथा ४२ ४३ ४७ और ५० वें अभिलेख में भी उक्त कथन पुनरावृत्त हुआ है। लिखा है
तस्यान्वये भू-विदिते बभूव यः पद्मनन्दिप्रथमाभिधानः । श्रीकण्डकुन्दादि मुनीश्वराख्यस्सत्संयमादुद्गत चारणद्धः ॥
स्पष्ट है कि इनका पद्मनन्दि नाम था । पर वे जन्मस्थानके नामपर कुन्दकुन्दनामसे अधिक प्रसिद्ध हुए ।
कुन्दकुन्दके षट्प्राभूतोंके टीकाकार श्रुतसागरने प्रत्येक प्राभूतके अन्त में जो पुष्पिका अंकित की है उसमें इनके पद्मनन्दि, कुन्दकुन्द, चक्रग्रीव, एलाचार्य और गृद्धपिच्छ ये नाम दिये हैं । जैन सिद्धान्त भास्कर भाग १ किरण ४ में शक सं० १३०७ का विजयनगरका एक अभिलेखांश प्रकाशित है, जिसमें लिखा है
"आचार्यः कुन्दकुन्दाख्यो वक्रग्रीवो महामुनिः ।
एलाचार्यों गुद्धपिच्छ इति तन्नाम पंचधा ॥"
पद्मनन्दि, कुन्दकुन्द वक्रग्रीव, एलाचार्य और गृद्धपिच्छ ये पाँच नाम कुन्दकुन्दके बताये हैं । डा० हार्नलेने दिगम्बर पट्टावलियोंके सम्बन्धमें एक निबन्ध लिखा था, जिसमें उन्होंने कुन्दकुन्दके पाँच नाम बताये थे । अतः इतना स्पष्ट है कि कुन्दकुन्दके दो नामोंकी प्रवृत्ति तो निस्संदेह रही है। पर शेष तीन नामोंके सम्बन्ध में विवाद है। शिलालेखोंसे तथा अन्य प्रमाणोंसे न तो वक्रीव और न एलाचार्य या गृद्धपिच्छ नाम की ही सिद्धि होती है। वक्र ग्रीवका उल्लेख ई० सन् ११२५ के ४९३ संख्यक अभिलेखमें द्रविड संघ और अगलान्वय के आचार्योंकी नामावली में आता है; किन्तु उसमें उनके सम्बन्धमें कोई विवरण प्राप्त नहीं होता । ११२९ ६० के श्रवणबेलगोलाभिलेख नं० ५४ में वक्रग्रीव नाम आया है, पर इस अभिलेखसे यह कुन्दकुन्दका नामान्तर है, ऐसा सिद्ध नहीं होता ।
श्रवणबेलगोलके अभिलेख नं० ३०५ में समन्तभद्र और पात्रकेसरी के पश्चात् वक्रग्रोवका नाम आया है और इन्हें प्रमिल संघका अग्रेसर कहा है । इसी प्रकार अभिलेख नं० ३४७ और ३१९ में भी वक्रग्रीवका नाम अंकित है, पर इन सभी अभिलेखोंसे कुन्दकुन्द के साथ वक्रप्रौदका सम्बन्ध नहीं सिद्ध होता ।
श्रवणबेलगोलके शिलालेखोंसे एलाचार्यके सम्बन्ध में भी कतिपय तथ्य प्राप्त होते हैं; पर यह कुन्दकुन्दका नामान्तर सिद्ध नहीं होता। इसी प्रकार गृद्धपिच्छ
१. जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, लेख नं० ४०, पृ० २४ ।
१०२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा