________________
१२. देशविरति अधिकार १३. चारित्रमोहनीय उपशमनाविकार १४. चारित्रमोहनीयक्षपणाधिकार १५. अद्धापरिमाणनिर्देशक अधिकार
'कसायपाहुड' की दो गाथाओंमें १५ अधिकारोंके नाम आये हैं । उनका अन्तिम पद 'अद्धापरिमाणनिद्देसो है । कुछ आचार्य इसे अपरमाणनिर्देश पन्द्र अधिकार मानते हैं; किन्तु जिन १८० गाथाओंमें १५ अधिकारोंके वर्णन करनेको प्रतिज्ञा को है उनमें बद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली छ: गाथाएँ नहीं आई हैं तथा १५ अधिकारोंमें गाथाओंका विभाग करते हुए इस प्रकारकी कोई सुचना भो नहीं दी गई है। इससे अवगत होता है कि गुणधराचार्यको अद्धापरिमाणनिर्देश अधिकार अभीष्ट नहीं था, किन्तु यतिवृषभने इसे एक स्वतन्त्र अधिकार माना है ।
चूर्णिसूत्रों के अध्ययनसे ज्ञात होता है कि यतिवृषभने १५ अधिकारोंका निर्देश करके भी अपने चूर्णि सूत्रोंकी रचना गुणधराचार्यके द्वारा निर्दिष्ट अधिकारोंके अनुसार ही की है । यह स्मरणीय है कि यतिवृषभने अधिकार के लिए अनुयोगद्वारका प्रयोग किया है । यह आगमिक शब्द है । अतएव उन्होंने आगमशैली में ही सूत्रोंकी रचना कर 'कसायपाहुड' के विषयका स्पष्टीकरण किया है । चूर्णिसूत्रों का विषय 'कसायपाहुड' का ही विषय है, जिसमें उन्होंने राग और द्वेषका विशिष्ट विवेचन अनुयोगद्वारोंके आधारपर किया है । तिलोयपण्णत्तो : विषय-विवेश्वन
तिलोय पण्णत्तो' में तीन लोकके स्वरूप, आकार, प्रकार, विस्तार, क्षेत्रफल और युगपरिवर्तन आदि विषयोंका निरूपण किया गया है। प्रसंगवश जैन सिद्धान्त, पुराण और भारतीय इतिहास विषयक सामग्री भी निरूपित है । यह ग्रन्थ ९ महाधिकारों में विभक्त है—
१. सामान्य जगत्स्वरूप, २. नारकलोक, ३. भवनवासलोक ४. मनुष्यलोक, ५. तिर्यक्लोक, ६. व्यन्तरलोक, ७ ज्योतिर्लोक, ८. सुरलोक और ९. सिद्धलोक ।
इन नौ महाधिकारोंके अतिरिक्त अवान्तर अधिकारोंकी संख्या १८० है । द्वितीयादि महाधिकारोंके अवान्तर अधिकार क्रमशः १५, २४, १६, १६, १७, १७, २१, ५ और ४९ हैं । चतुर्थं महाधिकारके जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और पुष्करद्वीप नामके अवान्तर अधिकारोंमेंसे प्रत्येकके सोलह-सोलह अन्तर अधिकार हैं। इस प्रकार इस ग्रन्थका विषय-विस्तार अत्यधिक है ।
९० तीर्थंकर महावीर बौर उनको आचार्य परम्परा