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४. पृच्छासूत्र - वक्तव्यविशेषको जिज्ञासा प्रकट करने वाले सूत्र । ५. विवरणसूत्र - विषयका विवेचन या व्याख्यान करनेवाले सूत्र । ६. समर्पणसूत्र -- उच्चारणाचार्यों द्वारा व्याख्यान करने के हेतु समर्पित ७. उपसंहारसूत्र — प्रकृत विपयका उपसंहार करनेवाले सूत्र ।
१. प्रेयोद्वेष
२. प्रकृति- स्थिति - अनुभाग- प्रदेश-क्षोण-स्थित्यन्तक ३. बन्धक
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चूर्णिसूत्रोंमें प्रयुक्त 'भणियन्त्रा', 'वेदव्वा', 'कायव्वा', 'परवेयब्बा' आदि पद इस बात के द्योतक हैं कि उच्चारणाचार्य इस प्रकार के पदोंका अर्थबोध कराते थे । चूर्णिकार यतिवृषभ जिस अर्थका व्याख्यान विस्तारभयसे नहीं कर सके उनके व्याख्यानका दायित्व उन्होंने उच्चारणाचार्यों या व्याख्यानाचार्यों पर छोड़ा है। निश्चयतः चूर्णिसूत्रकारने 'कसायपाहुड' के गम्भीर अर्थको बड़े ही सुन्दर और ग्राह्यरूप में निबद्ध किया है। गाथासूत्रोंमें जिन अनेक विषयोके संकेत दिये गये हैं उनका प्रतिपादन चूणिसूत्रों में किया गया है । चूर्णिसूत्रकारने अपने स्वतन्त्र मत्तका भी यत्र तत्र प्रतिपादन किया है। इन्होंने चोणसूत्र में जिन १५ अर्थाधिकारोंका निर्देश किया है, उनमें गुणधर द्वारा निर्दिष्ट अर्थाधिकारोंसे अन्तर पाया जाता है । जयध्वलामें विवेचन करते हुए लिखा है कि गुणधर भट्टारकके द्वारा कहे गये १५ अधिकारोंके रहते हुए इन अधिकारोंको अन्यरूप में प्रतिपादन करने के कारण गुणधर भट्टारक के यतिवृषभ दोष- दर्शक क्यों नहीं कहलाते ? वोरसेन स्वामीनें लिखा है कि यतिवृषभने गुणधराचायंके द्वारा कहे गये अधिकारोंका निषेध नहीं किया; किन्तु उनके कथनको ही प्रकारान्तरसे व्यक्त किया है । गुणधर द्वारा कथित १५ अधिकारोंका अर्थ यह नहीं है कि ये ही अधिकार हो सकते हैं, अन्य तरहसे वर्णन नहीं हो सकता । चूर्णिसूत्रकारने निम्नलिखित १५ अधिकारोंका कथन किया है
४. संक्रम
५. उदयाधिकार
६. उदीर्णाधिकार
७. उपयोगंधिकार
८. चतुःस्थानाधिकार ९. व्यञ्जनाधिकार
सूत्र
१०. दर्शनमोहनीय उपशमनाधिकार ११. दर्शनमोहनीयक्षपणांधिकार
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श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ८९