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चुण्णि सरूव टुक्करण सरूवपमाण होइ किं जत्तं । अटु सहस्सपमाणं तिलोमपण तिणामाए ॥
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इससे स्पष्ट है कि 'तिलोयपण्णत्ती' में चूर्णि सूत्रों की संख्या आठ हजार मानी है । पर इन्द्रनन्दिके 'श्रुतावतार' के अनुसार चूर्णिसूत्रों का परिमाण छः हजार श्लोक प्रमाण है; पर इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि चूर्णिसूत्र कितने थे | जयववलाटोकासे इन सूत्रोंका प्रमाण ज्ञात किया जा सकता है । सूत्रसंख्या निम्न प्रकार है
अधिकारनाम प्रेयोद्वेषविभक्ति
प्रकृतिविभक्ति
स्थितिविभक्ति अनुभाग विभक्ति
प्रदेशविभक्ति
क्षणाक्षणाधिकार
स्थित्यन्तिक
बन्धक
प्रकृतिसंक्रमण
स्थितिसंक्रमण अनुभाग संक्रमण प्रदेश संक्रमण
सूत्रसंख्या
११२
१२९
X019
१८९
२९२
१४२
१०६
११
२६५
३०८
५४०
1७४०
३२४१
अधिकारनाम
वेदक
उपयोग
सूत्र संख्या
६६८
३२१
२५
चतुःस्थान
व्यंजन
२
दर्शन मोहोपशामना १४०
दर्शन मोक्षपणा
१२८
संयमासं यमलब्धि
संयमलब्धि
९०
६६
चारित्रमोहोपशामना ७०६ चारित्र मोहुक्षपणा
१५७०
पश्चिम स्कन्ध
५२
૩૦૬૮
कुल ३२४१ + ३७६८- ७००९
चूणिसूत्रकारने प्रत्येक पदको बीजपद मानकर व्याख्यारूप में सूत्रों की रचना की है। इन्होंने अर्थबहुल पदों द्वारा प्रमेयका प्रतिपादन किया है । आचार्य वीरसेन के आधारपर चूपिसूत्रोंको सात वर्गों में विभक्त किया जा सकता है
१. उत्थानिकासूत्र - विषयको सूचना देने वाले सूत्र |
२. अधिकारसूत्र - अनुयोगद्वारके आरम्भ में लिखे गये अधिकारबोधकसूत्र ।
३. शंका सूत्र - विषय के विवेचन करनेके हेतु शंकाओंको प्रस्तुत करने वाले सूत्र |
१. चिलोयपण्णत्ती, दुसरी जिल्द, पृ० ८८२, माथा ७७ ।
८८ : तीर्थंकर महावीर और उनको माचार्य-परम्परा