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होता है। यतिवृषभने तिलोयपण्णत्तोके चतुर्थ अधिकारमें बताया है कि भगवान् महावीरके निर्वाण होनेके पश्चात् ३ वर्ष, आठ मास और एक परके व्यतीत होनेपर पञ्चम काल नामक दुधम कालका प्रवेश होता है। इस कालमें वीर नि० सं०६८३ तक केवली, वतकेवलो और पर्वधारियोंकी परम्परा चलती है। वीर-निर्वाणके ४७१ ? वर्ष पश्चात् शक राजा उत्पन्न होता है। शकोंका राज्यकाल २४२ वर्ष बतलाया है। इसके पश्चात् यतिवषभने गुप्तोंके राज्यकालका उल्लेख किया है। और इनका राज्यकाल २५५ वर्ष बतलाया है । इसमें ४२ वर्ष समय कल्किका भी है। इस प्रकरणके आगेवाली गाथाओंमें आन्ध्र, गुप्त आदि नपतियोंके वंशों और राज्यवर्षोंका निर्देश किया है । इस निर्देशपरस डा० ज्योतिप्रसादजीने निष्कर्ष निकालते हुए लिखा है-२ ___ 'आचार्य यतिवृषभ ई० सन् ४७८, ४८३, या ई० सन् ५०० में वर्तमान रहते, जैसा कि अन्य विद्वानोंने माना है, तो वे गुप्तवंशके ई० सन् ४३१ में समाप्तिको चर्चा नहीं करते। उस समय (ई० सन् ४१४-४५५ ई०) कुमारगुप्त प्रथमका शासनकाल था, जिसका अनुसरण उसके वीर पुत्र स्कन्दगुप्त (ई० ४५५-४६७) ने किया । इतिहासानुसार यह राजवंश ५५० ई० सन् तक प्रतिष्ठित रहा है। "तिलोयपण्णत्तो' की गाथाओं द्वारा यह प्रकट होता है कि गुप्तवंश २०० या १७६ ई० सन् में प्रारम्भ हुआ। यह कथन भी भ्रान्तिमलक प्रतीत होता है क्योंकि इसका प्रारम्भ ई० सन् ३१९-३२० में हुआ था 1 इस प्रकार गुप्तवंशके लिए कुल समय २३१ वर्ष या २५५ वर्ष यथार्थ घटित होता है। शकोंका राज्य निश्चय ही वीर नि० सं०४६१ (ई०प० ६६) में प्रारंभ हो गया था और यह ई० सन् १७६ तक वर्तमान रहा। ई० सन् ५वीं शतीका लेखक अपने पूर्वके नाम या कालके विषयमें भ्रान्ति कर सकता है; पर समसा. मयिक राजवंशोंके कालमें इस प्रकारको भ्रान्ति संभव नहीं है । ___ अतएव इतिहासके आलोक में यह निस्संकोच माना जा सकता है कि "तिलोयपण्णत्ती' की ४११४७४-१४९६ और ४१४९९-१५०३ तथा उसके आगेकी गाथाएँ किसी अन्य व्यक्ति द्वारा निबद्ध को गई हैं। निश्चय ही ये गाथाएं ई० सन् ५०० के लगभगको प्रक्षिप्त हैं। ___ तिलोयपण्णत्ती'का प्रारम्भिक अंशरूप सैद्धान्तिक तथ्य मूलतः यतिवृषभके हैं, जिनमें उन्होंने महावीर नि० सं० ६८३ या ७०३ (ई० सन् १५६-१७६) १. "णिज्याणगदे धीरे चउसदइगिसट्टिवासविच्छेदे ।
जा दो यसगरिदो रज्ज वंसस्स दुसयबादाला ।।" -तिलोयपण्णत्ती ४।१५०३ । २. '1'he Jaina sources of the history of Ancient India, P. 140-141.
८६ : तीर्थकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा