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किणी नामको
तयारी है।
सुनिक राजा था । इसको सुव्रता नामकी महिषी थी। इन दोनोंके वह महद्धिक देव स्वर्गसे चयकर प्रियमित्र नामक पुत्र हुआ । पिताने पुत्र जन्मोत्सव सम्पन्न करने के लिये अहंन्तकी पूजाके साथ चार प्रकारका दान दिया और नानाप्रकारसे गीत-नृत्यादिपूर्वक उत्सव सम्पन्न किया । कुमार प्रियमित्र यथानाम तथागुण था । सभी लोग उसे प्यार करते थे ।
पूर्व जन्मों में की गयी साधना अब अंगड़ाई ले रही थी। संकल्प इतना उग्र और उद्दीप्त हो चुका था कि अब उसे आवृत्त करनेमें सभी विकार अक्षम ये ! अमृत की साधना सफल हो रही थी जौर कुमार प्रियमित्र के समस्त जीवनके आदर्श आध्यात्मिकताको ओर अग्रसर हो रहे थे । अनादिकालीन अर्जित कर्मसंस्कार शिथिल हो गये थे और आत्मतत्त्वरूप चैतन्य पूर्णतया उद्बुद्ध हो गया था । कषाय-विकाररूप विषके शमन होते ही रत्नत्रय की अमृतधारा प्रवाहित होने लगी थी । कुमार संसारके विषयोंसे उदासीन रहता था और उसे संसार के सभी भौतिक पदार्थ अस्थिर एवं अहितकर प्रतीत होते थे ।
कुमारको उदासीनतासे माता-पिताको चिन्ता हुई और उन्होंने उसे कुशल राजनीतिज्ञ और नेता बनानेके हेतु गुरुके समक्ष अध्ययनार्थ भेज दिया । कुशाग्रबुद्धि कुमारने अल्पकालमें कला और विद्याओंमें प्रवीणता प्राप्त की ।
युवा होनेपर पित्ताने उसका राज्याभिषेक किया। पूर्व पुण्यके अतिशय प्रभाव से उसे चक्रवत्तित्व, अष्टसिद्धियाँ एवं नवनिधियां प्राप्त हुईं। प्रियमित्रने चक्ररत्नके प्राप्त होनेके अनन्तर षट्खण्ड पृथ्वीकी विजयके लिये प्रस्थान किया । वह चतुरंगिणी सेना सहित भ्रमण करने लगा और विद्याधर, मण्डलेश्वर एवं अन्य नृपतियोंको पराजित करता हुआ बढ़ने लगा । अनेक राजा और विद्याघरोंने अपनी सुन्दरी कन्याएं उसे भेंट में प्रदान की । चक्रवर्तीने रूप लावण्यवाली छानवे हजार राजकन्याओंसे विवाह किया । बत्तीस हजार मुकुटबंध राजा चक्रवर्तीकी आज्ञा शिरोधार्य करते और उसके चरणकमलमें नमस्कार करते थे । चक्रवर्तीके पास चौरासी करोड़ पैदल सेना, सोलह हजार गणदेव और अठारह् ह्जार म्लेच्छ राजा विद्यमान थे। उन्हें निम्नलिखित चौदह रत्न मो प्राप्त थे
(१) सेनापति - सेनानायक - युद्धकलाविशेषज्ञ (२) स्थपति-प्रधान इंजिनीयर (३) स्त्रीरत्न (५) पुरोहित
(४) हर्म्यपति
(६) गजरत्न
दीर्घकर महावीर और उनकी देशना ५१