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कर प्रोषषव्रतका आचरण करता या प्रातः शय्यासे उठकर मंदिके लिये सामायिक एवं स्तुति-पाठ करता । भोजन करनेके पूर्व सुपात्रोंको दान देता और अतिपिजनोंका यथोचित सत्कार करता था।
वह जितेन्द्रिय होकर परिमित रूपमें विषयोंका सेवन करताहुआ आत्मसिद्धि प्रवृत्त था । जनसाधारणके लिये कल्याणकारी कार्योका सम्पादन करता हुआ प्रजाके अभ्युदय एवं विकासकेलिये निरन्तर तत्पर रहता था। उसने राज्यके दायित्वके निर्वाहहेतु सम्पूर्ण राज्यको मशीनरीको ठीक कर दिया था । कृषि
और वाणिज्य-सम्बन्धी कार्योंकी देखभालकेलिये विभिन्न अधिकारी नियुक्त किये 1 उसने लोकतांत्रिकपद्धतिपर राज्यका विकास किया था। कृषियोग्य बंजर भूमिका सुधार, सिंचाई-व्यवस्था, बाजार-व्यवस्था आदिको उन्नत बनाया। यों तो कुमारके जीवन में अनेक उत्कर्ष और अपकर्ष प्राप्त हुए, पर उसका जीवन सरल रेखाकी गतिसे गमन कर रहा था । उसने आर्थिक स्वतंत्रता, अहिंसक वातावरण एवं पारस्परिक सहयोग और सहकारिताको भावना उत्पन्न कर प्रजाका अपार प्यार अर्जित कर लिया।
इस प्रकार राज्यका संचालन करते हुए कुमार हरिषेणने अगणित वर्ष व्यतीत किये। एक दिन उसने आकाशमें बादलोंका एक सुन्दर दृश्य देखा। इस दृश्यको देखते ही वह मुग्ध हो गया और उस दृश्यका मानचित्र अंकित करने लगा। सहसा वायुका एक झोका आया और आकाश में एकत्र मेघपटल क्षण-भरमें सिसर-वितर हो गया । हरिषेण सोचने लगा-"ऐसा सुन्दर दृश्य जब क्षणभरमें विलीन हो सकता है, तब इस जीवनका क्या विश्वास ? मैंने अगणित वर्षों तक संसारके सुखोंका उपभोग किया है, पर तृप्ति नहीं हुई । तृष्मा और आशाकी जलती हुई भट्ठीमें उपलब्ध होनेवाली सभी भौतिकताएं क्षण-भरमें स्वाहा हो जाती हैं। मैंने मानवताके परातलपर स्पिस रहनेका पूरा प्रयास किया, पर शान्ति दूर ही रही । मैं सदा सोचता हूँ, जीवन क्या है ? जगत् क्या है ? तथा उन दोनों में परस्पर सम्बन्ध क्या है ? बन्धन क्या है ? मुक्ति क्या है? पर समाधान मुझे मिल नहीं पाता। जीवन शरीरका धर्म नहीं है, बेसन आत्माका धर्म है । जीवन पवित्रतासे जीनेके लिये है । यह पवित्रता उस आत्माका धर्म है, जो मात्मा बुद्ध एवं प्रबुत है। जिसे अपने शुभ और अशुभका, सुन्दर एवं असुन्दरका तथा वांछनीय एवं अवांछनीयका सम्यक् परिज्ञान है। जो अपने भलेबुरे, भूत-भविष्यत् और वर्तमानपर चिन्तन कर सकता है, वही प्रबद्ध चेतन है, वही जागृत आत्मा है और वही विकासोन्मुख जीव है। भौतिक सभ्यता या भौतिक जीवनमूल्योंको जब मानवजीवनको तुलापर तौला जाता
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ४९