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रागताकी प्राप्ति तो संभव नहीं, पर उसके लिये प्रयत्न किया जा सकता है। आत्मामें अनन्त कालसे पुद्गलके प्रति जो ममता है, भौतिक पदार्थोके प्रति जो आकर्षण है, उसे तो दूर किया ही जा सकता है। अतएव मुझे तटस्थ भावसे शुभ भावनाओंका चिन्तन-मनन करना चाहिये। मैं इन विषयोंके बीच रहते हुए भी इनसे लिप्त नहीं होऊंगा। इस विचारधाराके प्रभावसे स्वर्गसे च्युत हो उसने मनुष्यपर्याय प्राप्त की । हरिषेण पर्याय : विकसित हुई साधना
महावीरको साधनाका वृक्ष अब पल्लवित हो चुका था। अब उसमें शनैः शनैः कलिकाएं मुकुलित होती हुई दृष्टिगोचर होने लगी थीं । सिंह जैसी हिंसक पर्यायमें अजित साधनाका संकल्प चन्दनवृक्षके समान अपनी सुगंध विकीर्ण करने लगा। जन्म-जन्मकी साधना सफलताके सामीप्यका लाभ करनेके लिये उतावली हो उठो।
कनकोज्ज्वलका जीद लान्तवस्वर्गसे च्युत हो कौशल देशको अयोध्या नगरीके राजा वज्रसेन और उनकी पत्नी शीलवतीके उदरसे हरिषेण नामका पुत्र हुआ । माता-पिताने बड़े उत्साह और अभ्युदयके साथ पुत्र-जन्मोत्सव सम्पन्न किया। पूर्व जन्मके अतिशय पुण्यके कारण कुमार हरिषेण नगरवासियों की आँखोंका तारा बन गया । जो भी उसका दर्शन करता, आनन्द-विभोर हो जाता और अपने भाग्यको सराहने लगता। कुमार हरिषेणने राजनीति-अर्थशास्त्र, कला-कौशल, धर्मशास्त्र, तर्कविद्या आदि सभी विषयों में दक्षता प्राप्त कर ली । उसका शरीर देवोंसे अधिक सुन्दर और विद्याधरोंसे अधिक मनोज्ञ था। कुमारके चातुर्यने सभी व्यक्तियोंको अपनी ओर आकृष्ट किया ।
हरिषेणके युवा होनेपर अनेक राजकन्याओं के सम्बन्ध विवाहके हेतु उपस्थित हुए। माता-पिता और मंत्रीपरिषद्ने कई सुन्दरी कल्याओंसे उसका विवाह-सम्बन्ध कर दिया । वन सेनने कुमारको सभी प्रकार योग्य जानकर उसका राज्याभिषेक किया। राज्यपद प्राप्त होते ही कुमारने बड़ी योग्यतासे राज्यकार्यका संचालन किया। उसकी न्यायप्रियता और शासनव्यवस्था सभीके लिये श्लाघनीय थी। कुमारकी मंत्रीपरिषद्में मनीषी विद्वानोंके साथ कवि और कलाकार भी सम्मिलित थे। वह अपनी दिनचर्या नियत कर लौकिक और पारमार्थिक कार्योका संचालन करता था । सम्यक्त्वकी निर्मलताके लिये देवपूजन, शास्त्र-स्वाध्याय एवं श्रावकके व्रतोंका प्रमादरहित पालन करता था। प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशीको सभी प्रकारके पापकार्योंका त्याग ४८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा