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में अपने अपमानका बदला स्वयंप्रभाको छीनकर लूंगा और युद्धभूमिमें त्रिपृष्ठका बष करूंगा। विधाताने स्वयंप्रमाको मेरे लिये बनाया है, त्रिपृष्ठके लिये नहीं । इस उदण्डताका फल सभीको भोगना पड़ेगा।"
अश्वग्रीवने अपनी सेनाको थबके लिये तैयार किया। तीन विद्याओंसे संपन्न विद्याधर राजाओंको युद्धमें सम्मिलिस होनेके हेतु आमन्त्रित किया । अश्वनीवने विभिन्न प्रकारकी विद्याओं और अस्त्र-शस्त्रसे सज्जित हो आक्रमण किया और रथावत नामक पर्वतपर अपना सैन्य शिविर स्थापित किया । गिरनार भी सामग्रीलकी सेनामा सागमन मुनकर अपनी चतुरंगवाहिनीके साथ वहां आ डटा । दोनों ओरसे व्यूहरचना होने लगी । धनुषधारी अपने धनुषोंको सज्जित कर रणभेरीको प्रतीक्षा करने लगे। ___ चारों ओर युद्ध-वाद्य बजने लगे। सेनापतियोंने अपनी-अपनी सेनाको युद्ध करनेका आदेश दिया । बाण-वर्षा होने लगी, जिससे सूर्य बाच्छादित हो गया। अश्ववाहिनीके सैनिक परस्परमें युद्ध करने लगे। त्रिपृष्ठकुमारकी सेनाकी वीरताके समक्ष अश्वग्रीवकी सेना ठहर न सकी और जिसप्रकार वायुके चलनेसे मेघ तितर-वितर हो जाते हैं, उसी प्रकार अश्वग्रीवकी विद्याधरसेना रण. भूमि छोड़कर भाग उठी। जब अश्वग्रीदने देखा कि रणक्षेत्र खाली हो रहा है, तो वह स्वयं ही युद्ध करनेके लिये आ डटा। उसने ललकारकर कहा-"निरपराधी इन सैनिकोंको मारनेसे क्या लाभ है ? अपराधी तुम हो, अतएव अब में तुम्हारे साथ ही युद्ध करना चाहता हूं। तुम्हारा और मेरा युद्ध ही अन्तिम निर्णायक होगा।" ____ अश्वग्रीव और त्रिपृष्ठ दोनों युद्ध करने लगे। अश्वग्रीदने मायाका संचारकर त्रिपृष्ठको पराजित करना चाहा, पर त्रिपृष्ठकी वीरताके समक्ष उसका वश न चल सका। अतएव अश्वग्रीदने लज्जित होकर त्रिपृष्ठके ऊपर कठोर चक्र चलाया। यह चक्र त्रिपुष्ठके पुण्यप्रतापसे प्रदक्षिणाकर शीघ्र ही उसकी दाहिनी भुजापर आकर स्थिर हो गया। त्रिपष्ठने उसे लेकर क्रोधवश शवपर चला दिया। जिससे अश्वग्रीवकी ग्रोवाके दो टुकड़े हो गये। अश्वनीवके धराशायी होते ही उसकी समस्त सेना और विद्याधर सामन्त भाग खड़े हुए।
विपृष्ठने अश्वग्नीवको पराजित करने के पश्चात् त्रिखण्डको जीतने के लिये प्रस्थान किया और सर्वत्र विजयका डंका बजाते हुए अपने स्थानपर लौट आया तथा त्रिखण्ड-अधिपत्ति होकर अर्द्धचक्रवर्तीका पद प्राप्त किया।
उसने विश्वनन्दीके भवमें किये गये निदानको पूरा किया और इस निदान
वीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ४१