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अग्निसह हठयोगको सामना
पुष्यमित्रके जीवन में हठयोगको साधना आरम्भकी गयी थी, वह साधना आवर्तकदशमलव गणितके समान बढ़ रही थी। असएव पुष्यमित्रका वह जीव स्वर्गसे मरणकर भरत क्षेत्रमें श्वेतिक नामके नगरमें अग्निभूत ब्राह्मण और उनकी स्त्री गौतमोसे अग्निसह नामक पुत्र हुआ । इस पर्यायमें इसने धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थोंका यथोचित सेवन किया । संन्यास संस्कार हो गया था, हठयोगका साधना अभी अपूर्ण की। फलतः यह वासी बना और उसका मधुर फल उसे स्वर्ग मिला।
स्वर्गके दिव्य भोग-भोगकर वह पुन: एकबार अग्निमित्र नामक परिव्राजक हआ और आंशिक साधनाके फलस्वरूप, उसे पुनः स्वर्ग सुख प्राप्त हुआ। इसमें सन्देह नहीं कि छोटा-सा अच्छा बीज भी मधुर फल उत्पन्न करता है। एक जन्ममें की गयो अहिंसाको आंशिक साधना भी अनेक जन्मोंमें फल देती है। अतएव वह स्वर्गसे च्युत हो, भारद्वाज नामक त्रिदण्डी साधु हा 1 मिथ्या श्रद्धाको वह दूर न कर सका । देवगतिके भोगोंमें आसक हो गया । इस इन्द्रियासक्तिने उसे अनेक कुयोनियोंमें परिभ्रमण कराया। पूर्वसंचित शुभकर्मोदयसे, उसे मनुष्य जन्म भी मिला । इस जन्मको सार्थक करने के लिये परिब्राजक दीक्षा ग्रहणकी और अज्ञानपूर्वक तप किया । आत्मानुभवसे वह दूर रहा । फलतः निर्वाण या आत्मकल्याणकी दिशाकी ओर बह प्रवृत्त न हो सका। यह सत्य है कि विवेकपूर्वक किया गया तप ही सिद्धिका कारण होता है । विश्वनन्दी : नया मोड़
मगध देश अपनी धनधान्य सम्पत्ति के लिये सदासे प्रसिद्ध रहा है। यह प्रदेश पवित्रता और रमणीयताकी संगमभूमि है। यहाँके कण-कणने प्राचीन कालसे ही जनमानसको आकृष्ट किया है । इस प्रदेशमें राजगृह नामक प्रसिद्ध नगर है, जिसमें विश्वभूति नामक राजा न्याय-नीतिपूर्वक शासन करता था। महावीरका वह जीव स्वर्गसे च्युत होकर इस राजाके यहाँ विश्वनन्दी नामक पुत्र हुआ । 'होनहार विरवानके होत चीकने पास नीतिके अनुसार विश्वनन्दी शैशव कालसे ही भविष्णु, प्रतिभाशाली और तेजस्वी दिखलायी पड़ता था। उसकी तेजस्विताको देखकर सभी आश्चर्य चकित थे। जो भी उस बालकको देखता था, वह उसके स्वभाव तथा गणोंको प्रशंसा किये बिना नहीं रहता था । समय पाकर विश्वनन्दी युवक हुआ। वह सभी विद्या और कलाओंमें प्रवीण हुआ और उसका विवाह अनेक सुन्दरी कन्याओंके साथ सम्पन्न हुआ। विश्वनम्दीके पराक्रम और प्रतापसे सभी प्रजा संतुष्ट थी और सभी लोग उसके स्वभावकी पुनः पुनः प्रशंसा ३० : तीर्थकर महायोर और उनकी आचार्य-परम्परा