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४. एम. ए. (संस्कृत) आगरा विश्व विद्यालय .... १९५७ ५. एम. ए. (हिन्दी) विहार विश्व विद्यालय
१९५८ ६. एम. ए. (प्राकृस) [स्वर्णपदक],,
१९५९ ७. पी-एच. डी. [हरिभद्रके कथा-साहित्यका आलोचनात्मकर परिशीलनj
भागलपुर विश्व विद्यालय ८. डी. लिट् [संस्कृत-काव्यके विकासमें जैन कवियोंका योगदान]
मगध विश्व विद्यालय १९६७ इन रेखाओंसे विदित है कि आचार्य शास्त्रो १९३७ से १९६७ तक लगातार ३० वर्ष सतत ज्ञानार्जनमें निरत रहे और तीव्रतिसे समग्र शैक्षणिक उपलब्धियां अर्जित करने में सफल हुए । प्रत्येक रोक्षाने प्रथा अपवा द्वितीय श्रेणीमें उत्तीर्ण होते गये। साहित्य-सृजन और पुरस्कार-प्राप्ति
आचार्य नेमिचन्द्रजीको अनेक कृतियों पर पुरस्कार एवं बहुमान प्राप्त हुआ। पुरस्कृत कृतियो निम्न प्रकार हैंअन्य प्रकाशक
पुरस्कार १. भारतीय ज्योतिष भारतीय ज्ञान पोठ उत्तर प्रदेश सरकार ११००) २. आदि पुराणमें प्रतिपादित भारत वर्षी-ग्रन्थमाला , , ५००) ३. संस्कृत-गीतिकाव्यानुचिन्तनम्
" , ११००) ___ इसी पर वृषभदेव संगीत पुरकार, श्रमण संघ दिल्ली .... २५००) ४. संस्कृत-काव्यके विकासमें जैन कवियों
का योगदान भारतीय ज्ञानपीठ उत्तर प्रदेश सरकार ५००) अन्य प्रकाशित रचनाएँ:
१. स्नात्तक-संस्कृत-व्याकरण (मौलिक) शानदा प्रकाशन, पटना २. चन्द्र-संस्कृत-व्याकरण मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ३. हेमशब्दानुशासन : एक अध्ययन चौखम्बा संस्कृत भवन, वाराणसी
(व्याकरणशास्त्रका तुलनात्मक अध्ययन) ४. अभिनव प्राकृत-व्याकरण
तारा यंत्रालय, वाराणसी ५. प्राकृत भाषा और साहित्यका बालोचनात्मक इतिहास
सारा यंत्रालय, वाराणसी ६. हरिभद्रके प्राकृत-कथासाहित्यका
आलोचनात्मक परिशीलन प्राकृत जैन शोध संस्थान, वैशाली ७. हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन भारतीय ज्ञान पीठ दिल्ली ८. णमोकार मंत्र : एक अनुचिन्तन भारतीय शान पीठ, दिल्ली
आचार्य नेमिचम्द शास्त्री : २३
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