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मावर्श, जिसे पुष्पोसे ही नहीं, कंटकोंसे भी प्यार था। सतानेवालेके प्रति भी एक सहज करुणा और कल्याणकी कामना विद्यमान थी। उनका चिंतन था, जो पा रहा हूँ, वह अपना किया ही पा रहा हूं। जो भोग रहा है, अपना किया ही भोग रहा हूँ। दूसरोंका कोई दोष नहीं। दूसरे सुख-दुःसमें निमित्त हो सकते है; कर्ता नहीं । कर्ता स्वयं मात्मा ही होता है। जो कर्सा होता है, वहीं भोक्ता भी होता है। का कोई और भोक्सा कोई, यह नहीं हो सकता । महावीर समत्वयोगके साधक थे और वे करुणाके देवता थे। उन्होंने विषको अमृत बना दिया और देर-विरोधका शमनकर समता और शां'सका मार्ग स्थापित किया ।
२२ : वीर्षकर महावीर और उनकी आवाय परम्परा