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शब्दका अश्वत्थामा नामक पुरुषमें उपचार किया गया है। इसी प्रकार शोलके निनित्तसे किसी मनुष्यको क्रोधी देखकर 'सिंह' कहना शोलोपचार है । राक्षसकर्म करते हुए देखकर किसीको राक्षस कहना; अन्नका प्राणवारणरूप कार्य देखकर अन्नको प्राण कहना; स्वर्णहारको कारणको मुख्यतासे स्वर्ण कहना; किसीको उच्चस्थानपर बेठनेके लिए मिल जानेपर उसे राजा कहना और किसीके ओजस्वी भाषणको सुनकर व्यासपीठका गर्जन कहना नैगमनय है।
संक्षेपमें जो भूत और भविष्यत् पर्यायोंमें वर्तमानका संकल्प करता है या वर्तमान में जो पर्याय पूर्ण नहीं हुई, उसे पूर्ण मानसा है, उस ज्ञान या वचनको नंगमनय कहते हैं । यथा--कोई व्यक्ति पानी भरकर चौकेमें लकड़ी डाल रहा है । उससे कोई पूछता है, क्या करते हो ? वह उत्तर देता है-भात बनाता हूँ। यद्यपि उस समय भात नहीं है, किन्तु भात बनानेका संकल्प किया। यह संकल्प हो नैगमनय है।
नंगमनयके पर्यायनगम, द्रव्यनगम और द्रव्यपर्यायनगम ये तीन भेद हैं। पर्यायनगमके तीन भेद हैं:-(१) अर्थपर्यायनेगम, (२) व्यञ्जनपर्यायनगम और (३) अर्थव्यजनपर्यायनेगम । द्रव्यनगमके दो भेद है:-(१) शुद्धद्रव्यनगम और (२) अशखदव्यनगम । द्रव्यपर्यायनगमके चार भेद हैं:-शुद्धद्रव्यार्थपर्यायनेगम, (३) अशुद्धद्रव्यार्थपर्याय नैगम और १४) अशुद्धद्रव्यव्यञ्जनपर्यायनैगम | २. संग्रह
अपनी जातिका विरोध न करके समस्त विशेषोंको एक रूपसे ग्रहण करनेवाला संग्रहह्नय है । संग्रहनयके दो भेद हैं:-(१) परसंग्रह और (२) अपरसंग्रह । समस्त विशेषोंमें सदा उदासीन रहनेवाला परसंग्रह सम्मात्र शदव्यका ग्राहक है, यथा सत्सामान्यकी अपेक्षा विश्व अद्वैतरूप है, पर जो विशेषोंका निराकरणाकर सत्ताद्वैतको मान्य करता है, वह परसंग्रहाभास है । सरसामान्यके अवान्तरभेदोंको एकरूपसे संग्रह करनेवाला अपरसंग्रह है। यथा-द्रव्यत्वकी अपेक्षा सब द्रव्य एक है और पर्यायत्वको अपेक्षा सब पर्याय एक हैं ।
३: ज्यवाहारनम ___ संग्रहनयके द्वारा गृहीत अर्थो का विधिपूर्वक विभाग करनेवाले अभिप्रायको व्यवहारनय कहते हैं। संग्रहनय समस्त पदार्थो को सत् रूपसे ग्रहण करता है और व्यवहारनय उसका विभाग करता है, जो सत् है, वह द्रव्य और पर्यायरूप है। जिस प्रकार संग्रहनयमें संग्रहकी अपेक्षा रहती है, उसी प्रकार
तीर्थकर महावीर और उनकी वेदाना : ४६९