________________
८. स्वद्रव्यादिग्राहकद्रव्याथिक – स्वद्रव्यादिचतुष्टयकी अपेक्षासे द्रव्यके सत्स्वरूपको ग्रहण करना ।
९. परद्रव्यादिग्राहकद्रव्यार्थिक-पर-द्रव्यादिचतुष्टयकी अपेक्षासे द्रव्यको असत्स्वरूप ग्रहण करना
१०. परमभावग्राहीद्रव्यार्थिक - अशुद्ध शुद्धोपचाररहित द्रव्य के परम स्वभावको ग्रहण करना
११. अनादिनित्य पर्यायायिक--- अनादिनिधनपर्यायोंको ग्रहण करना १२. सादिनित्यपर्यायार्थिक – कर्मक्षय से उत्पन्न अविनाशी पर्यायको ग्रहण
करना |
१३. अनित्यशुद्धपर्यायार्थिक सत्ताको गौणकर उत्पाद-व्यय स्वभावको ग्रहण करना |
१४. अनित्य- अशुद्धपर्यायार्थिक- पर्यायको एक समय में उत्पाद व्यय और प्रौव्यस्वभावयुक्त ग्रहण करना ।
१५. कर्मोपाधिनिरपेक्ष- अनित्य- अशुद्धपर्यायायिक संसारी जीवोंकी पर्यायको सिद्धसदृश शुद्धपर्याय ग्रहण करना ।
MANY
१६. कर्मोपाषिसापेक्ष अनिरय अशुद्धपर्यावधिक-संसारी जीयोंकी चतु सम्बन्धी अनित्य- अशुद्ध पर्यायको ग्रहण करना ।
१७. भूतनैगम -- असीत में वर्तमानका आरोप करना । १८. भाविनैगम भावो में भूतवत् कथन करना ।
१९. वर्त्तमाननंगम -- प्रारम्भ हुए कार्यको तैयार हुआ कथन करना । २०. सामान्यसंग्रह - सत्सामान्यको अपेक्षा समस्त द्रव्योंको एकरूपमें ग्रहण
करना ।
२१. विशेषसंग्रह - जातिविशेषकी अपेक्षासे अनेक पर्यायोंको एकरूपमें ग्रहण करना |
२२. शुद्धव्यवहार -- सामान्य संग्रहनयके विषयको भेदरूपमें ग्रहण करना | २३. अशुद्धव्यवहार - विशेषसंग्रह के विषयको भेदरूपमें ग्रहण करना | २४. सूक्ष्मऋजुसूत्र - एकसमयवर्ती सूक्ष्म अर्थपर्यायको ग्रहण करना । २५. स्थूलसूत्र - अनेकसमयवर्ती स्थूल पर्यायको ग्रहण करना ।
२६. शब्दनय - लिङ्ग, संख्या, साधन आदिके व्यभिचारको दूर करनेवाले ज्ञान और वचनको ग्रहण करना ।
२७. समभिरूढ़ --- शब्दके अनेक वाक्योंमेंसे किसी एक मुख्य वाच्यको ग्रहण
करना ।
तीर्थंकर महावीर और उनको देशना : ४६७