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वैषHदृष्टान्ताभास : भेदनिरूपण
१. साध्याश्यावृत्त--शब्द नित्य है, अमूर्त होनेसे; जो नित्य नहीं होता, वह अमूर्त भी नहीं होता, यथा परमाणु । यहाँ परमाणुका दृष्टान्त साध्याश्यावृत्त वैधयंदृष्टान्ताभास है, कारण परमाणुओंमें साधनको व्यावृत्ति होनेपर भी साध्यको व्यावृत्ति नहीं है ।
२. साधनाच्यावृत्त-शब्द नित्य है, अमूर्त होनेसे, कर्मवत् । यहाँ कर्मका दृष्टान्त साधनाज्यावृत्त दृष्टान्ताभास है; कारण कर्म में साध्यकी व्यावृत्ति होनेपर साधनकी ब्यावृत्ति नहीं है।
३. उभयाव्यावृत्त-शब्द नित्य है, अमूर्त होनेसे, आकाशवत् । यहाँ आकाश दृष्टान्त उभयाव्यावृत्त है, क्योंकि आकाशमें न साध्यको व्यावृत्ति है और न साधनकी ।
४. सन्दिग्धसाध्यव्यतिरेक--सुगत सर्वज्ञ है, क्योंकि अनुपदेशादिप्रमाणयुक्ततत्त्वप्रवक्ता है, जो सर्वज्ञ नहीं, वह उक्त प्रकारका वक्ता नहीं, यथा वीथीपुरुष । यहाँ वोथीपुरुषमें सर्वशत्वको च्यावृत्ति अनिश्चित है ।
५. सन्दिग्धसाधनव्यतिरेक शब्द अनित्य है, क्योंकि सत् है, जो अनित्य नहीं होता वह सत् भो नहों होता, यथा गगन । यहाँ गगनमें सत्त्वरूप साधनको व्यावृत्ति सन्दिग्ध है, क्योंकि वह अदृश्य है ।
६. सन्दिग्धोभयव्यतिरेक-हरिहरादि संसारो है, क्योंकि अज्ञानादियुक्त हैं, जो संसारी नहीं, वे अज्ञानादिदोषयुक्त नहीं, यथा बुद्ध । यहाँ बुद्ध दृष्टान्तमें साध्य और साधन दोनोंकी व्यावृत्ति अनिश्चित है।
७. अव्यतिरेक-शब्द नित्य है, अमूर्त होनेसे; जो नित्य नहीं, वह अमूर्त नहीं, यथा घट । घटमें साध्यकी व्यावृत्ति रहनेपर भी हेतुकी व्यावृत्ति तत्प्रयुक्त नहीं है।
८. अप्रदर्शितव्यतिरेक-शब्द अनित्य है; क्योंकि सत् है, आकाशवत् । यहाँ वैधयंसे आकाशमं व्यतिरेक अप्रदर्शित है।
९. विपरीतव्यतिरेक-जो सत् नहीं, वह अनित्य नहीं, यया आकाश । यहाँ साधनको व्यावृत्तिसे साधनकी व्यावृत्ति दिखलायो गयी है, जो विरुद्ध है।
इसप्रकार दृष्टान्ताभासके ९+ १० १८ भेद हैं। ४५६ : तीपंकर महावीर और उनका आचार्य परम्परा