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चिकर है । अन्यथानुपपत्तिसे रहित जितने भी विलक्षण हेतु हैं, वे अकिंचित्कर हैं । यथा शब्द विनाशी है, क्योंकि कृतक है। अथवा यह अग्नि है, क्योंकि धूम है। यहाँ कृतकत्व और धूमश्व हेतु प्रत्यक्षसिद्ध विनाशित्व और अग्निको सिद्ध करने में अकिंचित्कर है ।
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दृष्टाम्लाभास
दृष्टान्त में साध्य - साधनक. निर्णय आवश्यक है। जो दृष्टान्त दृष्टान्तके लक्षण से रहित है, वह दृष्टान्ताभास कहलाता है । दृष्टान्ताभासके मूलतः (१) साधर्म्यदृष्टान्ताभास और ( २ ) वैधम्यंदृष्टान्ताभास ये दो भेद हैं। साधम्यंदृष्टान्तभासकै नव भेद और वैधम्र्म्यदृष्टान्ताभासके भी नव भेद होते हैं । साधर्म्य दृष्टान्ताभास: भेवनिरूपण
१. साध्यविकल - शब्द नित्य है, अमूर्तिक होनेसे, कर्मके समान । यहाँ कर्म दृष्टान्तसाध्यविकल है, क्योंकि वह नित्य नहीं है, अनित्य है ।
मूलिक होते, प
२. साधनविकल शब्द निश्य है यहां परमाणु दृष्टान्तसाधनविकल है।
३. उभय विकल-शब्द नित्य है, अमूत्तिक होनेसे, घटवत् । यहां घट दृष्टान्त उभयविकल है; क्योंकि घट न सो नित्य है और न अमूर्तिक ही, वह अनिश्य तथा मूर्तिक है।
४. सन्दिग्धसाध्य -- सुगत रागादिमान् है, उत्पत्तिमान् होनेसे, रथ्यापुरुषवत् । इस अनुमानमें रथ्यापुरुष में रागादिका निश्चय नहीं है, अतः प्रत्यक्षद्वारा उसका निश्चय करना अशक्य है ।
५. सन्दिग्धसाधन — यह मरणशील है, रामादिमात् होनेसे, रध्यापुरुषवत् । यहाँ रथ्यापुरुष में रागादिका पूर्ववत् अनिश्चय है ।
६. सन्दिग्धोभय – यह असर्वज्ञ हैं, रागादिमान् होनेसे, रध्यापुरुषवत् । यहाँ रध्यापुरुषमें साध्य और साधन दोनोंका अनिश्चय है ।
७. अनन्वय -- यह रागादिमान् हैं, वक्ता होनेसे, रथ्यापुरुषवत् । यहाँ रथ्यापुरुषमें रागादिका सद्भाव सिद्ध न होनेसे अन्वय असिद्ध है ।
८. अप्रदर्शितान्वय – शब्द अनित्य है, क्योंकि कृतक है, घटकी तरह । सकता और अनित्यताका अन्वय प्रदर्शित नहीं है ।
९. विपरीतान्वय - जो अनित्य होता है, वह कृतक होता है, ऐसा विपरीत अन्वय प्रस्तुत करना विपरीतान्वयसाधर्म्यदृष्टान्ताभास है ।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ४५५