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________________ २०. विरुखकार्यानुपलब्धि-इस प्राणीमें कोई व्याधि है; क्योंकि इसकी धाएँ निरोग व्यक्तिकी नहीं हैं । २१. विश्वकारणानुपलब्धि इस प्राणीमें दुःख है, क्योंकि इष्टसंयोग नहीं देखा जाता। २२. विरुवस्वभावानुपलब्धि-वस्तु अनेकान्तात्मक है, क्योंकि एकान्त स्वरूप उपलब्ध नहीं होता। अर्मापसिका अनुमानमें अन्तर्भाव किसी दृष्ट या श्रुस पदार्थसे वह जिसके बिना नहीं होता, उस अविनाभावी अदृष्ट अर्थकी कल्पना करना अपत्ति है, यथा-'मोटा देवदत्त दिनको भोजन नहीं करता है' इस प्रसंगमें अर्थापत्ति द्वारा देवदत्तके रात्रि भोजनकी कल्पना कर ली जाती है, यत; भोजनके विना पीनत्व---मोटापन आ नहीं सकता । अर्थापत्तिसे अतीन्द्रिय शक्ति आदि पदार्थोका ज्ञान किया जाता है । इसके छ: भेद हैं:-(१) प्रत्यक्षपूर्विका, (२) अनुमानपूर्विका, (३) श्रुतार्यापत्ति, (४) उपमानापत्ति, (५) अर्धापत्तिपूर्विका अर्थापत्ति और (६) अभावपूर्विका अर्थापत्ति । अर्थापत्ति और अनुमानमें पृथक्त्वका कारण पक्षधमत्व है । अनुमानमें हेतुका पक्षधर्मत्व आवश्यक है, पर अथांपात्तमं पक्षधमत्व आवश्यक नहीं भाना जाता । अतः अर्थापत्तिको पृथक् प्रमाण माननेको आवश्यकता है। ___ अर्थापत्तिको अनुमानसे भिन्न माननेमें उक्त तक निबल है। यत: अविनाभावो एक अर्थसे दूसरे अर्थका ज्ञान करना जैसे अनुमानके है, वैसे अर्थापत्तिमें भी है। पक्षधर्मत्व अनुमानके लिए आवश्यक भी नहीं है। कृत्तिकोदय आदि हेतु पक्षधर्मरहित होकर भी सच्चे हैं और मैत्रतनयत्व आदि हेतु पक्षधर्मत्व रहनेपर भी गमक नहीं हैं। संक्षेपमें अर्थापनि अविनाभावमूलक या अन्यथानुपपन्नत्त्वमूलक होनेके कारण अनुमान के अन्तर्गत है, इसे पृथक् प्रमाण माननेको आवश्यकता नहीं है । अभावका प्रत्यक्षादिमें अन्तर्भाव ___ अभाव भी स्वतन्त्र प्रमाण नहीं है । जो यह कहा जाता है कि जिस प्रकार भावरूप प्रमेयके लिए भावात्मक प्रमाण होता है, उसी तरह अभावरूप प्रमेय के लिए अभावप्रमाणको आवश्यकता है । वस्तु सत् और असत् रूपमें पायी जाती है। अत: इन्द्रियोंके द्वारा सर्दशके ग्रहण हो जानेपर भी असदंशके ज्ञानके लिए अभावप्रमाण अपेक्षित है। जहाँ सद्भावग्राहक पांच प्रमाणोंकी प्रवृत्ति नहीं होती, वहाँ अभावप्रमाणको प्रवृत्ति देखी जाती है । यह दोषपूर्ण तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ४४९ अंभावका २९
SR No.090507
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size14 MB
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