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प्रतीत हुई। इधर मानव कुलों की भी वृद्धि हो रही थी, जिससे विषमता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती थी । अतः जनसाधारणकी आध्यात्मिक भूख बढ़ रही थी और बढ़ती हुई भौतिक आवश्यकताओंके नियंत्रणकी अपेक्षा बनी थी । अतएव कुलकरोंके पश्चात् चौबीस तीर्थंकर, द्वादश चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ नारायण और नौ प्रतिनारायण ये त्रेसठ शलाकापुरुष जन्म लेते हैं, जो सभी तरह की समाज-व्यवस्था एवं वैयक्तिक जीवनोत्थान में योगदान देते हैं ।
तीर्थकरों में सर्वप्रथम ऋषभनाथ या ऋषभदेव हुए हैं, जिन्होंने आत्मविद्याका नेतृत्व किया है । मानव समाजको कृषिको शिक्षा के साथ जीविकोपयोगी षट्कर्मोकी शिक्षा भी इन्होंने दी । ऋषभदेवने इस युग में जैनधर्मका प्रवत्तन प्रत्येक कल्पकालके समान ही किया है । भोगभूमि के पश्चात् जब कर्मक्षेत्रका प्रारम्भ हुआ, तो मानव समाज में सहअस्तित्व, सहयोग, सहृदयता, सहिष्णुता, सुरक्षा, सौहार्द एवं समानताका पाठ पढ़ाकर मानवके हृदय में मानव के प्रति भ्रातृत्वभावको उत्पन्न किया । इन्होंने गुणकर्मके अनुसार वर्णव्यवस्थाका भी प्रतिपादन किया । अहिंसा, दयावृत्ति, संयम, रत्नत्रय आदिकी आराधनापर बल दिया ।
ऋषभदेवके पिताका नाम नाभिराय और माताका नाम मरुदेवी था | अयोध्या नगरी में इनका जन्म हुआ था। इनके जन्म लेते ही सभी दिशाएँ शान्त हो गईं और सभी प्राणियोंको क्षणभरके लिये अपूर्व विश्राम प्राप्त हुआ । देव-देवेन्द्रोंने इनका जन्मोत्सव सम्पन्न किया । इनका नाम वृषभ या ऋषभदेव रखा गया । आचार्य जिनसेनने लिखा है कि जगत् के लिये हितकारक धर्मामृतकी वर्षा करनेवाले होनेके कारण इनका नाम वृषभदेव रखा गया । धर्म-कर्म के आद्य प्रवर्तक होने के कारण इनका आदिनाथ नाम भी प्राप्त होता है । इनका वंश इक्ष्वाकु था । ऋषभदेवका विवाह सम्पन्न हुआ और उनके ब्राह्मी और सुन्दरी कन्याओंके अतिरिक्त १०० पुत्र उत्पन्न हुए । ऋषभदेवने असंख्यात वर्ष पर्यन्त राज्य किया । धर्मानुकूल लोक व्यवस्था संचालित की ओर अन्तमें विरक्त होकर श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। ऋषभदेवके साथ अनेक राजा, सामन्त और महापुरुषोंने भी दीक्षा ग्रहण की। घोर तपश्चरण के अनन्तर इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और जगत्के जीवोंको शान्तिका उपदेश दिया ।
ऋषभदेवके पश्चात् अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपा चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अरनाथ, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पाक और वर्द्धमान ये तेईस तीर्थंकर हुए। इन सभीने सत्यका अन्वेषण किया, आत्म
८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा