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सामन या हेतु
जिसका साध्यके साथ अविनाभाव निश्चित है, उसे सापन कहते हैं।' अविनाभाय, अभ्यथानुपपत्ति और व्याप्ति ये सब एकार्थक शब्द हैं । साधनका निश्चय अन्यथानुपपत्तिरूपसे ही होता है। वस्तुत: साधन या हेतुके बिना अनुमानको उत्पत्ति हो नहीं हो सकती। कुछ चिन्तक हेतुका स्वरूप त्रिलक्षण अथवा पंचलक्षण स्वीकार करते हैं, पर इन सभीका अन्तर्भाव अन्ययानपपत्तिरूप हेतु में हो सकता है।
दूसरे, हेतुका रूप्य या पांचरूप्य नियम निर्दोष नहीं है, किन्तु अविनाभाव ऐसा व्यापक और व्यभिचारी लक्षण है, जो समस्त सद्हेतुओं में पाया जाता है और असदहेतुओंमें नहीं । परम्परासे 'अन्यथानुपपन्नस्व' को ही हेतुका अव्यभिचारो और प्रधान लक्षण कहा है, क्योंकि समस्त पदार्थ क्षणिक हैं, यत्तः वे सत् हैं' इस अनमानमें सत्वहेतु सपक्षसत्वके अभावमें भी गमक है। अतएव अविनाभाव हो हेतुका वास्तविक नियामक लक्षण है! पक्षषमस्व आदिको हेतुका लक्षण मानने में अतिव्याप्ति एवं अव्याप्ति दोष आते हैं। साध्य
दृष्ट, अबाधित और असिद्ध पदार्थको साध्य कहते हैं। जो प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे अबाधित होनेके कारण सिद्ध करने योग्य है, वह शक्य है। वादीको इष्ट होनेसे जो अभिप्रेत है और सन्देह आदि युक्त होनेके कारण असिद्ध है, वही वस्तु साध्य होती है।
साध्यका अर्थ है सिद्ध करने योग्य अर्थात् असिद्ध । सिद्ध पदार्थका अनुमान व्यथं है। अनिष्ट तथा प्रत्यक्षादि बाधित पदार्थ साध्य नहीं बन सकते । अतएव अनुमानके प्रयोगमें साधनके समान साध्य भो एक आश्यक अंग है। अनुमानके भेव
अनुमानके दो भेद हैं:-(१) स्वार्थानुमान और (२) परार्थानुमान । स्वयं निश्चित साधनके द्वारा होनेवाले साध्यके ज्ञानको स्वार्थानमान कहते हैं और अविनाभावी साधनके ववनांसे श्रोताको उत्पन्न होनेवाला साध्यज्ञान परार्थानुमान है । स्वार्थानमाता किसी परके उपदेशके बिना स्वयं ही निश्चित अविनाभावी साधनके ज्ञानसे साध्यका ज्ञान प्राप्त करता है । उदाहरणार्थ अब वह धूमको १. 'साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः' ।
-परीक्षामुख ३।११. २. इष्टमबाधितमसिद्धं साध्यम्
-वही, ३।१६,
तीर्थकर महावीर मौर उनकी देशना : ४४३