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नवम परिच्छेद ज्ञानतत्व-मीमांसा
ज्ञानका स्वरूप और व्युत्पति
ज्ञानशब्दको व्युत्पत्ति / जा + ल्युट से निष्पन्न है । इस शब्दका व्युत्पत्तिगत अर्थ "जानति ज्ञायतेऽनेन ज्ञप्तिमात्रं वा ज्ञानम्" अर्थात् जो जानता है वह ज्ञान है, जिसके द्वारा जाना जाय वह ज्ञान है अथवा जानने मात्रको ज्ञान कहते हैं ।
जो आत्मा है वह जानता है और जो जानता है वह आत्मा है । आत्मा और अनात्मामें अत्यन्ताभाव है। आत्मा कभी अनात्मा नहीं बनती और अनात्मा कभी आत्मा नहीं बनती । आत्मा ज्ञानसे कथञ्चित् भिन्नाभिन्न है । ज्ञान गुण है और आत्मा गुणी है । आत्मा पदार्थों को जानती है और ज्ञान जाननेका साधन है । यही कारण है कि आत्मा ज्ञानप्रमाण है और ज्ञान ज्ञेयप्रमाण है । ज्ञेय लोका
१. सर्वार्थसिद्धि ( सोलापूर-संस्करण), अ० १ सूत्र १, ५० ३.
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