________________
माहेन्द्रमें आठ लाख, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर युगलमें चार लाख, लान्तव-कापिष्ठ युगल में पचास हजार, शुक्र-महाशुक्र युगलमें चालीस हजार, सतार-सहस्रार युगल में छह हमार था आमत, प्राण, आरण और अच्युत इन चारों स्वगोंमें सब मिलाकर सात सौ विमान हैं। अधोग्रेवेयकमें १११, मध्य ग्रेवेयकमें १०७ और अर्ध्वग्रेवेयकमें ९१ विमान है । अनुदिशमें ९ और अनुत्तरमें ५ विमान हैं। ये सब विमान ६३ पटलोंमें विभाजित हैं। जिन विमानोंका ऊपरी भाग एक समतलमें पाया जाता है, वे विमान एक पटलके कहलाते हैं और प्रत्येक पटलके मध्य-विमानको इन्द्रक-विमान कहते हैं। चारों दिशाओं में जो पंक्ति रूप बिमान हैं, वे श्रेणीबद्ध कहलाते हैं। श्रेणियोंके बीच में जो फुटकर विमान हैं उनकी प्रकीर्णक संज्ञा है।
सर्वार्थसिद्धि विमान लोकके अन्तसे वारह योजन नीचा है। ऋजु विमान ४५ लाख योजन चौड़ा है। द्वितीयादिक इन्द्रकोंकी चौड़ाई क्रमशः घटती गयी है और सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रक विमानकी चौड़ाई एक लाख योजन है । ___ लोकके अन्तमें एक राजू चौड़ी, सात राज लम्बी और आठ योजन मोटी ईषत्प्रारभार नामक आठवीं पृथ्वी है | इस पृथ्वीके मध्यमें रूप्यमयी छत्ताकार ४५ लाख योजन चौड़ी और मध्यमें आठ योजन मोटी सिद्धशिला है। इस सिद्धशिलाके ऊपर तनुदातमें मुक्त जीव विराजमान हैं । तथ्य यह है कि उर्ध्यलोक मृदंगाकार है, इसका आकार त्रिशरावसंपुटसंस्थान जैसा है। लोकस्थिति
आकाश, पवन, जल और पृथ्वी ये विश्वके आधारभूत अंग हैं । विश्वकी व्यवस्था इन्हींके आधार-आधेयभावसे निर्मित है। लोक भी उत्पाद-व्ययप्रोव्यात्मक है। इसकी व्यवस्था तर्कके आधारपर प्रतिष्ठित है । जीवादि सभी द्रव्य लोकमें निवास करते हैं और अलोकमें केवल आकाश ही आकाश रहता है । वस्तुतः लोकको स्थिति अनेकान्तवादके आलाकमें घटित होती है। आध्यात्मिकदृष्टि : नेय
आध्यात्मिकदृष्टिसे पदार्थोंका तीन विभागोंमें वर्गीकरण किया गया है:(१) हेय (२) उपादेय और (३) शेय। हेयका अर्थ है त्याज्य । जो आत्मामें आकुलता उत्पन्न करनेवाला हो वह हेय है। इस दृष्टिसे संसार और संसारके कारणीभूत आस्रव एवं बन्ध हेय पदार्थ हैं। मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्या चारित्र भी हेयके अन्तर्गत है। उपादेय वे पदार्थ हैं, जिनसे अक्षय, अविनाशी और अनन्त सुख प्राप्त हो। निश्चयसे विशुद्ध मान-दर्शनरूप निज आत्मा
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना । ४०७