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________________ छोड़कर दूसरी-दूसरी गलीमें गमन करते हैं, जिस दिन सूर्य भीतरी गली में गमन करता है, उस समय १८ मुहूर्तका दिन १२ मुहूर्त की रात्रि होती है। तथा क्रमशः घटते-घटते जिस दिन सूर्य बाहरी गली-वीथिमें गमन करता है, उस दिन बारह मुहर्तका दिन और १८ महत की रात्रि होती है । सूर्य कर्कसंक्रातिके दिन आभ्यन्तर वीथि-भीतरी गली में गमन करता है। इस दिन दक्षिणायनका प्रारम्भ होता है और मकरसंक्रान्तिके दिन बाह्य वीथिपर गमन करता है। इस दिन उत्तरायणका आरम्भ होता है। प्रथम वीथिसे एकसौ चौरासीवी बोथिमें आनेमें १८३ दिन, तथ अन्तिम वीथिसे प्रथम वीथि तक पहुंचने में १८३ दिन लगते हैं। दोनों अय नोंके ३६६ दिन होते हैं। इसोको सूर्यवर्ष कहते हैं । सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र आदि की गणितात्मक गति गगनखण्डों द्वारा जानी जाती है ! काल-विभाजन ज्योतिष्क देवोंकी गति द्वारा ही होता है। उयलोक मेरुसे ऊपर लोकके अन्त तकके क्षेत्रको उर्वलोक कहते हैं । इसके दो भेद हैं:-(१) कल्प और (३) कल्पातीत । जहाँ इन्द्र, सामानिक आदिकी कल्पना होती है, वे कल्प हैं और जहां यह कल्पना नहीं है, वे नास्माता है। कर पा सोलह स्वर्ग हैं:-(१) सौधर्म, (२) ईशान, (३) सनतकुमार, (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्म, (६) ब्रह्मोत्तर, (७) लांतव, (८) कापिष्ठ, (९) शुक्र, (१०) महाशुक्र, (११) सतार, (१२) सहस्रार, (१३)आनत, (१४)प्राणत,(१५) आरण, (१६) अच्युत । इन १६ स्वर्गोमेंसे दो-दो स्वर्गों में संयुक्त राज्य है । इस कारण सौधर्म, ईशान आदि दो-दो स्वर्गो का एक-एक युगल है। आदिके दो तथा अन्तके दो इस प्रकार चार युगलोंमें आठ इन्द्र हैं और मध्यके चार युगलोंमें चार ही इन्द्र हैं । अतएव इन्द्रोंकी अपेक्षा स्वर्गों के बारह भेद हैं। सोलह स्वर्गों से ऊपर कल्पासीत हैं। इनमें नव वेयक, नव अनुदिश और पंच-अनुत्तर इन २३ की गणना की जाती है । सोलह स्वर्गों में तो इन्द्र, सामानिक, पारिषद आदि दस प्रकारकी कल्पना है और कल्पातीतोंमें यह कल्पना नहीं है, वहां सभी अहमिन्द्र कहलाते हैं। मेरुकी चूलिकासे एक बालके अन्तरपर ऋषु विमान है। यहीसे सौधर्म स्वर्गका आरम्म होता है । मेरु तलसे डेढ़ राजूकी ऊंचाईपर सौधर्म-ईशान युगलका अन्त है। इसके ऊपर डेढ़ राजूमें सनतकुमार-माहेन्द्र युगल और उसके ऊपर आधे-आधे राज्यमें छह युगल हैं। इस प्रकार छह राजमें आठ युगल हैं। सौषम स्वर्गमें बत्तीस लाख, ईशानमें बीस लाख, सनतकुमारमें बारह लाख, ४०६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090507
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size14 MB
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