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बालुकाप्रभा तीसरी पृथ्वी है। चौथी पंकप्रभा पृथ्वी चौबीस हजार योजन मोटी, पाँचवीं धूमप्रभा बीस हजार योजन मोटी, छठी तमप्रभा सोलह हजार योजन मोटी और सातवीं महातमप्रभा आठ हजार योजन मोटी है। सातवीं पृथ्वीके नीचे एक राजू प्रमाण आकाश निगोदादिक जीवोंसे भरा हुआ है। वहाँ कोई पृथ्वी नहीं है। इन सातों पृथिवियों को क्रमशः वंशीधा, अंजना, अरिष्टा, मधयी ओर माघवी नामोंसे भी अभिहित किया जाता है ।
पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन भाग हैं: - (१) खरभाग, (२) पंकभाग और (३) अब्बहुलभाग |
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मुक्त जीव लोकके शिखरपर निवास करते हैं और संसारी जीवोंका निवास समस्त लोक है | गतिको अपेक्षा संसारी जीवोंके चार भेद है: - (१) देव, (२) मनुष्य, (३) तिर्यञ्च और (४) नारकी । देवोंके भी चार भेद है: - (१) भवनवासी ( २ ) व्यन्तर (३) ज्योतिषी और ( ४ ) वैमानिक । भवनवासियों के (१) असुरकुमार (२) नागकुमार, (३) विद्युत्कुमार (४) सुपर्णकुमार, (५) अग्निकुमार (६) वातकुमार (७) स्तनितकुमार, (८) उदधिकुमार, (९) द्वीपकुमार और (१०) दिक्कुमार ये दस भेद हैं। व्यन्तरोंके (१) किन्नर, (२) किंपुरुष, (३) महोरग, (४) गन्धर्व, (५) यक्ष, (६) राक्षस, (७) भूत और (८) पिशाच ये माठ भेद हैं। खरभाग में असुरकुमारको छोड़कर शेष नवप्रकार के भवनवासी देव और राक्षसके अतिरिक्त शेष सात प्रकारके व्यन्तरदेव निवास करते हैं । पंकभाग में असुरकुमार और राक्षसोंके निवास स्थान है। अब्बहुलभाग और शेष छः पृथ्वियों में नारकियोंका निवास है ।
नारकियोंके निवासरूप सातों पृथिवियों में कुल ४९ पटल हैं। पहली पृथिवी के अब्बहुल भाग में १३, दूसरी में ११, तीसरी में ९, चौथी में ७, पाँचवी में ५, छठोमें ३ और सातवीं पृथ्वीमें १ पटल है । ये पटल इन भूमियोंके ऊपर नीचेके एकएक हजार योजन छोड़कर समान अन्तरपर स्थित हैं ।
चौथेमें पहले नरक में एक सागर, दूसरेमें तीन सागर, तीसरे में सात सागर, दस सागर, पांचवें में सत्रह सागर, छठे में बाईस सागर और सातवें में तेतीस सागरकी उत्कृष्ट स्थिति होती है। प्रथम नरकमें जघन्य आयु दस हजार वर्षकी हैं और प्रथमादि नरकोंकी उत्कृष्ट आयु ही द्वितीयादि नरकोंमें जघन्य आयु होती जाती है ।
पापोदयसे यह जीव नरकगतिमें जन्म ग्रहण करता है। यहाँ नाना प्रकार के भयानक तीव्र दुःख भोगने पड़ते हैं। पहली चार पृथिवियों और पांचवीक
३९८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा