________________
(१) स्निग्ध और रुक्षका संयोग-इसे विषम वैद्युत् प्रकृतिजन्य कारण माना जाता है।
(२) जघन्य या शून्य वैद्युत् प्रकृति के परमाणुओंमें बन्धाभाव ! जघन्य गुणवाले परमाणुओंमें बन्ध नहीं होता ।
(३) सदृश परमाणुओंका गुण साम्य होने पर बन्धाभाव रहता है । पुगलबन्ध-प्रक्रिया
पुद्गलको बन्ध-व्यवस्था बहुत ही विस्तृत हैं । गुणशब्द शक्ति अंशका पर्यायवाची है। पुद्गलके प्रत्येक गुणको पर्याय एक-सी नहीं रहती, प्रतिसमय परिनित होनी रहती है ! सनाट बन्धको योग्यतापर विचार करना आवश्यक है । जिन परमाणुओंमें स्निग्ध और रुक्ष पर्याय जघन्य हो, उनका बन्ध नहीं होता । वे तबतक परमाणु दशामें ही बने रहते हैं, जबतक उनकी जघन्य पर्याय परिवर्तित नहीं हो जाती। इससे स्पष्ट है कि जिनकी जघन्य पर्याय नहीं होती, उन परमाणओंका बन्ध हो सकता है। बन्धकी योग्यता रहने पर भी समान शक्ति अंशवाले परमाणुओंका बन्ध नहीं होता । संक्षेपमें असमान शक्ति अंशवाले सदृश परमाणुओंका और समान शक्ति अंशवाले विशदृश परमाणुओंका बन्ध सम्भव है | यों तो दो शक्ति-अंश अधिक होनेपर एक पुद्गलका दुसरे पुद्गलसे बन्ध होता है । उदाहरणके लिये यों कहा जा सकता है कि एक परमाणुमें स्निग्य या रूक्ष मुणके दो शवित-अंश हैं और दूसरे परमाणु में चार शक्तिअंश हैं, तो इन दोनों परमाणुओं का बन्ध सम्भव है । एक परमाणु में स्निग्ध या रूक्ष गुणके तीन शक्ति-अंश हैं और दुसरे परमाणु में पांच शक्ति-अंश हैं, तो इन दोनों परमाणुओंका भी बन्ध हो सकता है। प्रत्येक अवस्थामें बंधनेवाले पुद्. गलोंमें दो शक्ति-अशोका अन्तर होना चाहिये । इससे न्यून या अधिक अंतरने होनेपर बन्ध नहीं होता । बन्ध सदृश और विशदृश दोनों प्रकारके पुद्गलोका परस्परमें होता है । सदृशका अर्थ समान जातोय और विदेशका अर्थ असमान जातीय है । एव रूक्ष पुद्गलके प्रति दुसरा रूक्ष पुद्गल समान जातीय है और स्निग्ध पुदगल असमान जातीय है। इसी तरह एक स्निग्ध पुद्गलके प्रति दुसरा स्निग्ध पुद्गल समानजातीय है और रूक्ष पुद्गले असमानजातीय है । इस प्रकार परमाणुकी बन्ध-व्यवस्था अबगत करनी चाहिए।
प्रत्येक परमाणु स्वभावतः एक रस, एक रूप, एक गंध और दो स्पर्शगुण हैं । पुद्गलके बीस गण माने गये हैं-पाँच रूप, पाँच रस, दो गंध और आठ स्पर्श । पाँच रूपोंमें काला, नीला, पीला, श्वेत और लालकी गणना है । तिक्त-- घरपरा, आम्ल-खट्ठा, कटुक्र-कडुवा, मधुर-मीठा और कषाय-कसैला ये पाँच ३५० : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा