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वातावरण सब प्रकारसे दुःखदायक है । यहाँको प्रकृति भो दुःखदायी रहती है। शीत-उष्णता भयंकर होती है। नारको जीव परस्परमें सदा युद्ध मोर कलह करते रहते हैं तथा आपसमें मार-पीट करते रहते हैं । इस प्रकार नरकमें एक क्षणको भी जीवको शान्ति नहीं मिलती है। यहाँ क्षुधा-तृषाजन्य अपार वेदना भी रहती है । नरकसे निकलकर जीव तिर्यच या मनुष्यर्गात ही प्राप्त करता है। नारकी जीव न तो देवगसि ही प्राप्त कर सकता है और न पुनः नरकति ही प्राप्त करता है। एकाध भवके पश्चात उसे नरक या देवगतिका प्राप्ति होतो है। इन तीनों गतियोंमें सभी प्राणी संशी पंचेन्द्रिय ही होते हैं।
उक्स तोनों गतियोंके अतिरिक्त अन्य जितने प्राणी हैं वे तिर्यंच गसिके हैं। एकेन्द्रिय, वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असेनी पंचेन्द्रिय जीव तो तिथंचगतिमें ही होते हैं, अन्य किसी गतिमें नहीं। सैनी पंचेन्द्रिय पशुओंमें मगर, मत्स्य, घड़ियाल आदि जीव जलचर, तोता, कबूतर, मयूर, चिड़िया आदि आकाशमें उड़नेवाले जीव नभचर एवं गाय-घोड़ा, बंदर, चूहा, सांप, कुत्ता मादि जीव थलचर कहलाते हैं। तियंचगतिके संशो पंचेन्द्रिय जीवोंके जलचर, नभचर ओर थलघर ये तीन भेद किये गये हैं। जीवोंका विचार और भी विस्तारके साथ किया जा सकता है, पर संक्षेपमें जीवोंकी यही मीमांसा है। इस जीवविज्ञानका उपयोग अहिंसा आचरणमें किया जाता है। जो प्राणो उपयोगिताको दृष्टिसे जितना अधिक विशिष्ट होता है, उसकी हिंसामें उतना ही अधिक पापाजेन होता है। यों तो हिंसा और अहिंसाका सबंध भावोंके साथ है। पर प्राणियोंकी उपयोगिताको दृष्टि भी अध्ययनीय है। पुदगल : निरूपण __जिसमें 'पूरण'-बाहरी अंश मिलनेकी शक्ति और 'गलन'-गल जानेको पाक्तिकी क्रिया होती रहता है । अर्थात् जो टूटता-फूटता और मिलता रहता है, उसे पुद्गल कहते हैं । पुद्गलमें रूप-रस-गंध ओर स्पर्श ये चार गुण अवश्य होते हैं। जो द्रव्य स्कंध अवस्थामें 'पूरण'-अन्य-अन्य परमाणुओंसे मिलना और गलन'-कुछ परमाणुओंका बिछुड़ना, इस प्रकार उपचय और अपचयको प्राप्त होता है, वह पुद्गल कहलाता है। यह समस्त दश्य जगत् पुद्गलका ही विस्तार है । मूलदृष्टिसे पुद्गल परमाणुरूप है। अनेक परमाणुओंसे मिलकर जो स्कंध तैयार होता है, वह संयुक्स द्रव्य कहलाता है । पुद्गलपरमाणु जबतक अपनी बन्धशक्तिसे शिथिल या निविडरूपमें एक-दूसरेसे जुटे रहते हैं, तबतक स्कंध कहलाते हैं। इन स्कंधोंका बनाव और बिगाड़ परमाणुओंकी बन्यशक्ति और भेदशक्तिके कारण होता है। परमाणुओंको बन्ध-व्यवस्थाको निम्नलिखित स्थितियाँ हैं:--
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ३४१