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उत्पन्न हुई पुरुषको शक्ति विशेष आभ्यन्तर उपकरण है। इस आभ्यन्तर उपकरण के अभावमें दान तथा हस्तव्यापार आदि बाह्य उपकरण के रहमेपर भी ज्ञानरूप आभ्यन्तर उपकरणके अभावमें जीव पदार्थोंका झाला नहीं हो सकता । बाह्य उपकरण कसे भिन्न रहता है, पर आभ्यन्तर उपकरण उससे अभिन्न रहता है। अतएव ज्ञान-ज्ञानीके प्रदेश भिन्न नहीं है। जो यात्माके प्रदेश हैं, वे ही प्रदेश ज्ञानादि गुणोंके भी हैं, इसलिए उनमें प्रदेशभेद नहीं है ।
ज्ञान ही आत्मा है । यतः ज्ञान आत्माके बिना नहीं रहता, अतः ज्ञान आत्मा ही है ।' आत्माके अनेक गुणोंमें ज्ञानगुण प्रधान है, यह आत्माका असाधारण गुण है। यह आत्माके अतिरिक्त अन्यत्र नहीं पाया जाता, अतएव गुण-गुणी में अभेद विवक्षाकर ज्ञानको ही आत्मा कह दिया जाता है। यों तो आत्मा जिस प्रकार ज्ञानगुणका आधार है, उसी प्रकार अन्य गुणोंका भी आधार है। ज्ञानगुणके आधारको अपेक्षा आत्मा ज्ञानरूप है | कर्तृत्व : विवेचन
परिणमन करनेवालेको कर्ता, परिणामको कर्म और परिणतिको क्रिया कहते हैं। ये तोनों वस्तुतः भिन्न नहीं हैं, एक द्रव्यवी ही परिणति हैं । जीवमें कर्तृत्वशक्ति स्वभावतः पायी जाती है । आत्मा अग्पभूतव्यवहारनयसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय आदि पुद्गलको तया भवन, वस्त्र आदि पदार्थों का कर्ता है | अशुद्धनिश्चयनयसे अपने राग-द्वेष आदि चतन्यकर्मोंभावकर्मोका और शनिश्चयनयकी दृष्टिसे अपने शुद्ध चतन्यभावोंका कर्ता है । ___ जोव और अजीव अनादिकालसे सम्बद्ध अवस्थाको प्राप्त हैं, अतः यह प्रश्न होना स्वाभाविक है कि इन दोनोंके अनादि सम्बन्धका क्या कारण है ? जीवने कर्मको किया या कर्मने जीवको किया ? यदि यह माना जाय कि जीवने बिना किसी विशेषताके कर्मको किया, तो सिद्धावस्था में भी कम करने में काई विप्रतिपत्ति नहीं होगी। यदि कर्मने जांचको किया, तो कर्म में ऐसी विशेषता
१. गाणं अप्पत्ति मदं चददिणाणं विणा ण अप्पाणं । तम्हा णाण अण्णा अप्पा गाणं 4 अणं वा ।।
-प्रवचनसार, गाथा २.७. २. पुग्गलकम्मादोणं कत्ता ववहारदो दू णिवयदो । चंदणकम्माणादा, सुरणया सुद्धभावाणं ।।
द्रव्यसंग्रह, गाथा ८.
३४० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा