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पर्याय । भाववती शक्तिके परिणमनको अर्थगुणपर्याय और क्रियावती शक्तिके परिणमनको व्यञ्जन-गुणपर्याय कहते हैं।
प्रदेशवत्व गुणके परिणमनका नाम द्रव्य या व्यञ्जनपर्याय है और शेष गुणोंके परिणमनको गुणपर्याय या अर्थपर्याय कहा जाता है ।'
संसारका प्रत्येक पदार्थ द्रव्य, गुण और पर्यायसे तन्मयीभावको प्राप्त हो रहा है ।क्षणभरके लिए भी न तो द्रव्य पर्यायसे रहित मिलता है और न पर्याय द्रव्यसे रहित। यद्यपि पर्याय क्रमवर्ती है, तो भी सामान्यरूपसे कोई न कोई पर्याय प्रत्येक समय में रहती है । इसी द्रव्यपर्यायात्मक पदार्थको सामान्यविशेषात्मक या अनेकान्तात्मक कहा जाता है ।
अतएव ज्ञेय उत्पादादि यात्मक, गणपर्यायात्मक है। ज्ञानका विषय होनेसे यह ज्ञेय कहलाता है । ज्ञेय अर्थ द्रव्यरूप है और द्रव्य गुण-पर्यायरूप है । इस प्रकार द्रव्य, गुण और पर्यायका त्रिक ही ज्ञानका विषय होनेसे झेय कहा गया है। ___जीवादि द्रव्य अपना-अपना स्वतः सिद्ध अस्तित्व रखते हैं और लोकाकाशमें एक क्षेत्रावगाहरूपसे स्थित होनेपर भी अपनी-अपनी स्वतन्त्र सत्ताको नहीं
द्रव्य-निरूपण
गुण और पर्यायोंको प्राप्त होनेवाले द्रव्यके मूल छ: भेद हैं:-(1) जोध, (२) पुद्गल, (३) धर्म, (४) अधर्म, (५) आकाश और (६) काल । ये छ: द्रव्य ज्ञेय या प्रमेय कहलाते हैं। इनमें जीव, पुद्गल और काल अनेक मेदस्वरूप १. तम्म यतोऽस्ति विशेषः सति च गणानां गणत्ववत्वेऽपि । विविधा तथा स्यात् क्रिमावती शक्तिरव च मागवती ॥ तत्र क्रिया प्रदेशो देषापरिस्पन्दलक्षणो वा स्यात् । भावः शक्तिविशेषस्तत्परिणामोऽथवा निरंशांश: ।। सप्तरे प्रदेशभागास्ततरे द्रव्यस्य पर्यायनाम्ना । पतरे च विशेषाशास्ततरे गुगपर्यया भवम्स्येव ।।
-पञ्चाध्यापी, ११३३-१३५. विष्कम्भःकम इति वा क्रमः प्रवाहस्य कारणं तस्य । न विपक्षितमिह किञ्चित्तत्र तपास्वं किमम्पपात्वं वा ॥ क्रमवर्तित्वं नाम व्यतिरेकपुरस्सरं विशिष्ट । समपति भवति न सोऽयं भवति सपाय पण म भवति ॥ ही, १।१७४-७५.
तीर्थकर महावीर मोर सनकी देखना : ३३१