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अनुगत प्रत्ययकी कल्पना सम्भव नहीं, यतः स्वतन्त्र सत्तावाले द्रव्योंमें अनुस्यूत कोई एक पदार्थ हो ही नहीं सकता | इसे पृथक् सत्तावाले द्रव्योंकी संयुक्त पर्याय तो माना नहीं जा सकता, क्योंकि एक पर्याय में दो अतिमिनक्षेत्रवर्ती द्रव्य उपादान नहीं होते | जिस व्यकिने अनेक मनुष्योंमें बहुतसे अवयवोंकी समानता देखकर सादृश्यकी कल्पना की है, उसीको उस सादृश्यके संस्कारके कारण 'मनुष्यः मनुष्यः' इस प्रकारको अनुगस प्रतीति होती है। मतएव दो विभिन्न द्रव्योंमें अनुगत प्रतीतिका कारणभूत सादृश्यास्तित्व मानना पड़ता है, इसे ही महासत्ता कहा जाता है।
अभिप्राय मह है कि एक दासी शेयोंम भनुपराजय वा सामान्यसे होता है और व्यावृत्तप्रत्यय पर्यायनामके विशेषसे । दो विभिन्न द्रव्योंमें अनुगतप्रत्यय तिर्यक् सामान्य-सदृश्यास्तित्वसे तथा व्यावृत्तप्रत्यय व्यतिरेकनामक विशेषसे होता है। तिर्यक सामान्यरूप सादृश्यको अभिव्यक्ति यपि पर-सापेक्ष है, किन्तु उसका आधारभूत प्रत्येक द्रव्य अलग-अलग है । यह उभयनिष्ठ न होकर प्रत्येकमें परिसमाप्त है। ___सामान्यविशेषात्मक अथवा अनन्तधर्मात्मक वस्तु या पदार्थमें ध्रौव्यांशको अवंतासामान्य और उत्पाद-व्ययको पर्याय नामक विशेष कहा जाता है। यदि केवल स्वरूपास्तित्वरूप ऊर्ध्वतासामान्यको ही स्वीकार किया जाय, तो वस्तु विकालमें सर्वथा एकरस, अपरिवर्तनशील और कूटस्थ बनी रहेगी। इस प्रकारके पदार्थमें कोई परिणमन न होनेसे जगत्के समस्त व्यवहार उच्छिन्न हो जायंगे । कोई भी क्रिया कार्यकारी नहीं हो सकेगी। पुण्य, पाप, बन्ध, मोक्ष आदिको व्यवस्था भी नष्ट हो जायगी । अतः वस्तु या पदार्थ में परिवर्तन स्वीकार करना होगा।
इसी प्रकार यदि पदार्थको पर्यायनामक विशेषके रूपमें ही स्वीकार किया जाय अर्थात् क्षणिक माना जाय, तो पूर्वक्षणका उत्तरक्षणके साथ कोई सम्बन्ध ही घटित नहीं हो सकेगा।
अतएव पदार्थ या वस्तु सामान्य-विशेष, एक-अनेक, विधिनिषेध आदि परस्परविरुद्ध प्रतीत होनेवाले समस्त धर्मोफे समन्वयका पिण्ड है। वस्तुको सर्वथा नित्य माननेपर उसमें उत्पाद-व्यय सम्भव नहीं हैं, अतएव क्रिया कारकको योजना भी नहीं बन सकती है। इसी प्रकार जो सर्वथा असत् है, उसका कभी जन्म नहीं होता और जो सत् है, उसका कभी नाश नहीं होता। दीपकके बुझ जानेपर भी उसका सर्वथा नाश नहीं माना जाता, यतः उस समय अन्धकार
तीपंकर महावीर और उनकी देशना : ३२५