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महावीरने सत्त्वको त्रयात्मक बताया है। इस त्रयात्मकताको मिद्धि निम्नलिखित उदाहरण द्वारा होती है:
एक राजाके एक पुत्र और एक कन्या थी। राजाके पास एक स्वर्णकलश है । कन्या उस कलशको चाहती है, किन्तु राजपुत्र उस कलशको तोड़कर मुकुट बनवाना चाहता है। राजा पुत्रको हठ पूरो करनेके लिए कलशको तुड़वाकर उसका मुकुट बनवा देता है। कलशनाशसे कन्या दुःखी होती है, मुकुटके उत्पादसे पुत्र प्रसन्न होता है। पर राजा तो स्वर्णका इच्छुक है, जो कलश टूटकर मुकुट बन जानेपर भी मध्यस्थ रहता है, उसे न शोक होता है और न हर्ष । असः वस्तु त्रयात्मक है।'
एक अन्य उदाहरण भी मननीय है:
जिसने केवल दूध ही सेवन करनेका त लिया है, वह दही नहीं खाता । जिसने केवल दही खानेका व्रत लिया है, वह दूध नहीं खाता और जिसने गोरसमात्र न खानेका व्रत लिया है, वह न दूध खाता है और न दही; क्योंकि दूध और दही दोनों गोरसको पर्यायें हैं, अतः गोरसत्त्व दोनों में है । अतएव सिद्ध होता है कि वस्तु उत्पाद-व्यय-धौम्यात्मक है।
इस प्रकार तीर्थंकर महावीरने पदार्थका स्वरूप त्रयात्मक कहा। वस्तुतः प्रत्येक पदार्थ मनन्तधर्मात्मक है । इसे संक्षेपमें सामान्यविशेषात्मक भी माना जा सकता है। स्वरूपास्तित्व और त्रयात्मकता ____ अस्तित्व दो प्रकारका है:-(१) स्वरूपास्तित्व और (२) सादृश्यास्तित्व । प्रत्येक द्रव्य या पदार्थको अन्य सजातीय अथवा विजातीय द्रव्यसे असंकीर्ण रखनेवाला और उसके स्वतन्त्र व्यक्तित्वका प्रयोजक स्वरूपास्तित्व है। इस १. पटमानिसुवार्थी नाशोत्पादस्पितिव्वयम् । शोषप्रमोदमाम्यस्थ्यं अनो याति सहेतुकम् ॥
-आप्तमीमांसा, पछ ५९. २. सोयोन सम्पत्ति न पवोत्ति दषिवतः । बोलतो मोय तस्मातत्वं भवात्मकम् ॥
-वही, पच ६.. 1, सम्माचो हि बहाचो गुणेहि सगपाएहि चिहि । दम्पस सव्वकालं उप्पादव्ययधूवत्तेहिं ।।
अस्तित्वं हि किल द्रव्यस्थ स्वभावः, तत्पुनरन्यसाधननिरंपेक्षरवादनाचनाततया हेतुकर्यकरूपतया वृत्त्या मित्रप्रवृत्तवाविभावधर्मवेलक्षण्याच्च, भावभाववद्मावाला
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना । ३२३