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अष्टम परिच्छेद
देशना-ज्ञेयतत्व विरासतको उपलब्धि और वितरण
तीर्थकर महावीरके पूर्व तेईस अन्य तीर्थकर हो चुके थे, जिनकी विरासत उन्हें सहजरूपमें उपलब्ध हुई थो । तेईसवें तीर्थंकर पार्वनायको हुए अभी अधिक समय नहीं व्यतीत हुआ था। अत: उनकी परम्परा धर्मदेशनाके रूपमें प्राप्त थी । पार्श्वनाथ महावीरसे केवल २५० वर्ष पूर्व हुए थे। पार्श्वनाथके अनकल्याणकारी उपदेशके सम्बन्धमें कोई निश्चित विवरण प्राप्त नहीं होता, पर जैन और बौद्ध ग्रन्थोंसे यह ज्ञात होता है कि इन्होंने चातुर्याम धर्मका उपदेश दिया था। पार्श्वनाथके समयमें बालतप और यज्ञीय हिंसाकी समस्याएं ज्वलन्त थीं, अत: इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त कर अपने उपदेश द्वारा उनका समाधान प्रस्तुत किया ।
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