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कर दिया । दक्षिण भारतसे लौटे हुए जैन साधुनोंने इसका विरोध किया, क्योंकि वे पूर्ण नग्नताको महावीरकी शिक्षाओंका बावश्यक भाग मानते थे । विरोधका शान्त होना असम्भव पाया गया और इस तरह श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय उत्पन्न हुए ।"
'भारतके प्राचीन राजवंश' ग्रन्थ में पण्डित श्रीविश्वेश्वर नाथ रेकने उपर्युक्त तथ्य जैसा ही विवेचन किया है। उन्होंने लिखा है- "कुछ समय बाद जब अकाल निवृत्त हो गया और कर्नाटकसे जैन लोग वापस लौटे, तब उन्होंने देखा कि मगवके जैन साधु पोछेसे निश्चित किये गये धर्म-ग्रन्थोंके अनुसार स्वेतवस्त्र पनने लगे हैं । परन्तु कर्नाटकसे लौटनेवालोंने इस बातको नहीं माना । इससे वस्त्र पहननेवाले जैन साधु श्वेताम्बर और नग्न रहनेवाले दिगम्बर कहलाये ।"
अतएव बौद्ध साहित्यमें जो संघभेदकी समीक्षा की गयी है, वह उसकी प्रामाणिकता में सन्देह उत्पन्न करती है ।
साम्प्रदायिक विद्वेषवश बौद्ध साहित्य में महावीरके रक्त-पित्त रोगका कथन और नालन्दासे उनका दावा के जाना ये दोनों ही बातें भी भ्रान्त हैं । यदि मज्झिमनिकाय, अट्ठकथा और सामगामसुत्तवण्णनामें महावोरकी निर्वाणभूमिके लिये आये हुए सन्दर्भपर विचार करें, तो दो तथ्य प्रस्फुटित होते हैं ।
(१) किसी भी रोगीको मरणासन्न स्थितिमें बहुत दूर नहीं ले जाया जा सकता है और साथ ही रोगी ऐसा हो, जो साधु, त्यागी, व्रती है और जिसका संसार में कहीं कोई सम्बन्धी नहीं है, उसे उतनी अधिक दूर ले जाना बुद्धिमत्ता नहीं है | अतः कुशीनगर के निकटवर्ती सठियांव -- पावा तक महावीर नहीं गये होंगे। यह पाचा तो नालन्दाको निकटवत्तनी ही सम्भव है । अतः बोद्ध वाङ्मयके उक्त तर्कसे नालन्दाकी समीपवर्तनी पावा ही निर्वाणभूमि सिद्ध होती है !
( २ ) जैन वाङ्मय में महावीरके अन्तिम समयकी ऐसी कोई घटना नहीं मिलती, जिससे यह सिद्ध होता हो कि महावीर अन्तिम समयमें नालन्दासे पाचा गये । जैन आगमोंमें स्पष्ट उल्लेख है कि चम्पामें वर्षावास समाप्त कर महावीर भ्रमण करते हुए पावा गणराज्य हस्तिपालकी रज्जुकशालामें आये और यहीं अन्तिम चातुर्मास किया ।
१. एनशियेन्ट इण्डिया, पु० १७९.
२. भारतीय प्राचीन राजवंश, भाग २, पु० ४१.
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ३०९