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________________ ४. महावीरको मृत्यु रक्तपित्त रोगसे हुई । ५. अस्वस्थावस्थामें : माले उन्हें पात्रा में ले जाया गया । इन तथ्योंपर क्रमशः विचार करनेपर अवगत होता है कि महावीरका निर्वाण पावामें हुआ, यह सत्य है । पर यह पावा कौन-सी है ? यह स्पष्ट नहीं होता । मल्ल गणराज्यको पावा तो यह हो नहीं सकती, क्योंकि जैन ग्रन्थोंमें महावीरको निर्वाणभूमि मध्यमा पावा बतलायी गयी है। __ महावीरके निर्वाण-समयमें ही जैनसंघमें फूट पड़ गयी, यह नितान्त भ्रामक है। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराएँ यह स्वीकार करतो हैं कि उक्त संघभेद मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्तके समय में हआ। जब मगध जनपद में बारह वर्षका दुष्काल पड़ गया तो श्रुतकेवली भद्रबाहु अपने नेतृत्वमें बारह हजार मुनिसंघको लेकर दक्षिण भारतकी ओर चले गये। कुछ मुनि यहाँ भी रह गये, वे समयके प्रभावसे श्वेतवस्त्रधारी बन गये। फलतः श्वेताम्बर और दिगम्बर संघ-भेद ई० पू० ३००के लगभग उत्पन्न हुआ। अतएव बौद्ध वाङमयमें निर्ग्रन्थोंके सम्बन्धमें जो फूटको चर्चा की गयी है, वह बुद्धके समयको नहीं हो सकतो है। ऐसा मालूम पड़ता है कि साम्प्रदायिक विद्वषवश यह सन्दर्भ बादमें जोड़ा गया है। __ कैम्बिज हिस्ट्री, ऐनशियेन्ट इण्डिया, भारतके प्राचीन राजवंश आदि ग्रन्थोंमें एक मतसे श्वेताम्बर और दिगम्बर भेदको मगधके दुभिक्षके पश्चात् माना गया है। कैम्ब्रिज हिस्ट्री में भद्रबाहुके दक्षिण गमनका निर्देश करते हुए लिखा गया है-'यह समय जैनसंघके लिये दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीत होता है और इसमें कोई सन्देह नहीं कि ई० पू० ३०० के लगभग महान् संघभेदका उद्गम हुआ, जिसने जैन संघको श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायोंमें विभाजित कर दिया । दक्षिणसे लौटे हुए साधुओंने, जिन्होंने दुर्भिक्ष कालमें बड़ी कड़ाईके साथ अपने नियमोंका पालन किया था, मगधर्भ रह गये, अन्य अपने साथी सापोंके आचारसे असन्तोष प्रकट किया तथा उन्हें मिथ्याविश्वासी और अनुशासनहीन घोषित किया' ।" आर० सी० मजुमदारने भी अपने इतिहासमें संघभेदका समय मगधके दुर्भिक्षको ही इगित किया है। उन्होंने लिखा है--"जब भद्रबाहुके अनुयायी मगघमें लौटे, तो एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ। नियमानुसार जैन साधु नग्न रहते थे, किन्तु मगधके जैन साधुओंने सफेद वस्त्र धारण करना प्रारम्भ १. मैम्बिज हिस्ट्री ( सन् १९५५), पृ० १४७. ३०८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090507
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size14 MB
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