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सिद्ध मुहुत्ते साइणा जक्खत्र्तण जोगमुवागएणं कालगए विइपकते जाव सन्यदु
खप्पहोणे ___ अर्थात् महावीर अन्तिम वर्षावास करनेके हेतु मध्यमा पाबाके राजा हस्तिपालके रज्जुकसभा-धर्मगृहम ठहरे हुए थे | चातुर्मासका चतुर्थ मास और वर्षाऋतुका सप्तम पक्ष चल रहा था । अर्थात् कार्तिक कृष्ण अमावस्याकी तिथि थी। रात्रिका अन्तिम प्रहर था। श्रमण भगवान महावीर कालधर्मको प्राप्त हुए--संसारको त्याग कर चले गये । जन्म-ग्रहणको परम्पराका उच्छेदकर चले गये। इनके जन्म, जरा और मरणके सभी बन्धन नष्ट हो गये । भगवान् सिद्ध, बुद्ध, मुहान सब धुखोकी अ धिक नक हुए।
तीर्थकर महावीरके निर्वाणस्थलके सम्बन्धमें दिगम्बर-ग्रन्थोंसे भी प्रकाश प्राप्त होता है । बताया है:पावाए मज्झिमाए हत्थवालिसहाए णमंसामि ।
-प्राकृतप्रतिक्रमण, पृ० ४६. अर्थात् मध्यमा पावाम इस्तिपालवी सभामें स्थित महावीरको नमस्कार करता हूँ। आशाधरजीने अपने क्रियाकलापमें लिखा हैपावायां मध्यमायां हस्तिपालिकामण्डपे नमस्यामि ।
-संस्कृत-क्रियाकलाप, पृ०५६. अतएव यह स्पष्ट है कि तीर्थकर महावीरका निर्वाण मध्यमा पावामें राजा हस्तिपालको रज्जुक-शालामें हुआ था। अभिलेखोंसे ज्ञात होता है कि यह रज्जुकशाला धर्मायतनके रूपमें होती थी। यहांपर धर्मोपदेश अथवा प्रवचन होनेके लिए पर्याप्त स्थान रहता था। सहस्रों व्यक्ति इस स्थानपर बैठ सकते थे। रज्जुकशालामें चौरस मैदानके साथ एक किनारे भवन स्थित रहता था। अतः दिगम्बर-परम्पराके उल्लेखानुसार भी महावीरका निर्वाण स्थल मध्यमा पावा है । यह हस्तिपाल राजा कोई बड़ा राजा नहीं था, सामन्त या जमींदार जैसा था । यतः उस युग में नगराधिपति भी राजा द्वारा उल्लिम्वित्त किया जाता था। अतएव यह आशंका संभव नहीं है कि मगध नृपति थेणिकके रहते हुए निकटमें ही हस्तिपाल राजाका अस्तित्व किस प्रकार संभव है ? महावीरके समरमें प्रायः प्रत्येक बड़े नगरका अधिपति राजा कहा जाता था ।
१. कल्पसूत्र, सूत्र १२३, पृ० १९८. श्रीअमर जैन आगम शोध संस्थान,
शिवाना (राजस्थान) २९६ : तीर्थकर महावीर और उनकी काचार्य-परम्परा