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इन तीनों जैन ग्रन्थकारोंके कथनानुसार शकराज सथा कल्किराजका जन्म निश्चित हो जाता है।"
विद्वान लेखक डॉ. उपाध्यायने शक-संवत्-सम्बन्धी जैन धारणाओंके आवारपर शक और गुप्त संवत्का सम्बन्ध व्यक्त करते हुए लिखा है-"इस समयसे यह ज्ञात होता है कि गुप्तसंवत्को तिथि २४१ जोड़नेसे शक-कालमें परिवर्तन हो जाता है । इस विस्तृत विवेवनके कारण अलबेरुनीके कथनकी सार्थकता ज्ञात हो जाती है। यह निश्चित हो गया कि शक-कालके २४१ वर्ष पश्चात् गुप्त-संवत्का आरम्भ हुआ।'
पूर्वोक अध्ययनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि शकसंवत, गुप्तसंवत्, विक्रमसंवत् आदिकी मीमांसा महावीर-निर्वाण संवत्से की गयी है । अतः
गप्त-संवतका प्रारम्भ ई. सन् ३१९
महाबोर-निर्वाण गुप्त-संवत् पूर्व ८४६ अतएव ८४६ - ३१९ = ५२७ ई० पू० महावीर-निर्वाणकाल आता है।
संक्षेपमें तीर्थंकर महावीरको निर्वाण-तिथि कात्तिक कृष्णा चतुर्दशी रात्रिका अन्तिम प्रहर, स्वातिनक्षत्र, मंगलवार, १५ अक्टूबर ई० पू० ५२७ है । इसी दिनसे यह तिथि 'दीपावलि' के रूपमें प्रचलित हो गयी। निर्वावस्था
तीर्थकर महावीरका निर्वाण मध्यमा पावा अथवा पावापुरीमें हुआ। इस पावापुरीको स्थिति कहाँपर है, यह एक विचारणीय प्रश्न है। वर्तमानमें अनुसंधानके नामपर कुछ व्यक्ति नये-नये स्थानोंपर पुराने क्षेत्रोंकी कल्पना कर प्रसिद्धि प्राप्त करनेके प्रयासमें हैं। तथ्य कहाँ तक इतिहाससे सम्मत्त है, यह शोषका विषय है । जैन-साहित्यके प्राचीन और अर्वाचीन सभी ग्रन्थों में महावीरका निर्वाण-स्थान पावापुरीमें बताया गया है। कल्पसूत्रमें तीर्थंकर महावीरके निर्वाण-सम्बन्धी सन्दर्भ निम्नप्रकार उपलब्ध हैं :
"सत्य णं जे से पावाए मज्झिमाए हस्थिवालस्स रन्नो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं उवागए तस्स णं अंतरावासस्स जे से वासाणं चसत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियबहुले सस्स णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसी पक्खणं जा सा चारिमारणि तं रणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगये विइक्कते समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधणसिद्धे बुढे मुत्ते अंतगडे परिनिब्बुडे सव्वदुक्खपहीणे चंदे नाम से दिवसे उनसमि त्ति पवुच्चइ देवाणंदा नाम सा रयनी निरइ ति पवुच्चइ अच्चेलवे मुहत्ते पाणू थोवे सिद्ध नागे करणे सध्वट्ठ१. गुप्तसाम्राज्यका इतिहास, भाग १, पृ० १८१.
तीपंकर महावीर और उनको देशना : २९५