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१०८ वर्षं मौर्यवंश, ३० वर्षं पुष्यमित्र, ६० वर्षे बलमित्र - भानुमिश्र, ४० वर्ष नहपान, १३ वर्षे गर्दभिल्ल बोर ४ वर्ष एक काल है । अतएव ६० + १५५ + १०८ + ३० + ६० + ४० + १३ + ४० ४७० वर्ष - महावीर निर्वाण ४७० विक्रमादित्यका राज्यप्रातिकाल हुआ । इस आधारपर पूर्ववत् ४७० + ५७ - ५२७ ई० पू० महावीरका निर्वाण काल आता है ।
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डॉ० वासुदेव उपाध्यायने 'गुप्तसाम्राज्यका इतिहास ग्रन्थ में गुप्त-संवत्पर विचार करते समय जैन ग्रन्थों का आधार स्वीकार किया है। उन्होंने लिखा है':- "अलबेरुनीसे पूर्वं शताब्दियों में कुछ जैन ग्रन्थकारोंके आधारपर यह ज्ञात होता है कि गुप्त तथा शककालमें २४१ वर्षका अन्तर है । प्रथम लेखक जिनसेन, जो ८ वीं शताब्दी में वर्त्तमान थे, उन्होंने वर्णन किया है कि भगवान् महावीरके निर्वाणके ६०५ वर्ष ५ माके पश्चात् शक राजाका जन्म हुआ तथा शकके अनुसार गुप्तके २२१ वर्ष शासन के बाद कल्किराजका जन्म हुआ । द्वितीय ग्रन्थकार गुणभद्रने (८८९ ई०) उत्तरपुराण में लिखा है कि महावीर निर्वाणके १००० वर्ष बाद कल्किराजका जन्म हुआ। जिनसेन तथा गुणभद्रके कथनका समर्थन आचार्य नेमिचन्द्रके वचनोंसे भी होता है ।"
"नेमिचन्द्र त्रिलोकसारमें लिखते है - 'शकराज • महावोर- निर्वाण के ६०५ वर्ष ५ मासके बाद तथा शककालके ३९४ वर्ष ७ माहके पश्चात् कल्किराज पैदा हुआ । इनके योगसे (६०५ वर्ष ५ माह + ३९४ वर्ष ७ माह् = १००० वर्ष होते हैं।'
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सट्टी पायरोपणवन्णसयं तु होइ नंदाणं । मट्टखयं मुरियाणं तीस वि समित्तस्स ।।
मिस - भामित्त सट्टी वरिसरणि बस नवाणे | वह गल्लिरज्जं तेरस वरिस समस्स चट (वरिसा) 11
- तपागच्छ - पट्टावलि, पन्यास कल्याणविजय, पृ० ५०-५२.
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१. वृतसाम्राज्यका इतिहास, भाग १ १० १८२, १८३. २. वीरनिर्वाणकाले च पालकोऽत्राभिषिच्यते । लोकेऽवन्तिसुता राजा प्रजानां प्रतिपालकः ॥ भद्रवाणस्य तद्राज्यं गुप्तानां च शतद्वयम् । एकविंशदच वर्षाणि कालविद्भिरुदाहृतम् ॥ द्विचत्वारिंशदेवातः कल्किरावस्थ राजता । ततोऽजिवमो राजा स्यादिन्द्रपुरस्थितः ॥
-हरिवंशपुराण, ज्ञानपीठ- संस्करण ६००४८७, ४९१, ४९२. ३. उत्तरपुराण, ज्ञानपीठ- संस्करण ७६६४२८-४३१.
२९४ : तोषंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा