________________
कम्बोज
यह गान्धारका पाश्र्ववर्ती प्रदेश था।आजकल कंधारके निकटवतीं प्रदेशको कम्बोज माना जाता है। अशोकके पञ्चम अभिलेखमें बताया गया है कि उसने अपने धर्ममहामात्योंको यवन और काम्बोज लोगांके साथ-साथ गन्धार-निवासियोंके प्रदेशमें भी नियुक्त किया था। यह जनपद गन्धारसे लगा हुआ, संभवतः उसके पश्चिमका प्रदेश था। डॉ० राधाकुमुद मुकर्जीने इसे काबुल नदीके तटपर स्थित प्रदेश माना है। पर वस्तुत: इसे बिलोचिस्तानसे लगा ईरानका प्रदेश मानना ही अधिक उचित है ।
बौद्ध साहित्यसे अवगत होता है कि यवन और कम्बोज में आर्य और दास दो ही वर्ण थे । डॉ० मोतीचन्द्रनं कम्बोजको पामीर प्रदेश मानकर द्वारकाको आधनिक दरवाज नामक नगरसे मिलाया है, जो बदखशांके उत्तर में स्थित है। जातककथाओंमें कम्बोजक सुन्दर घोड़ोंका उल्लेख आया है। वाल्हीक
इस जनपदकी अवस्थिति के सम्बन्धमें दो मत हैं:-(१) कुछ विद्वान इसकी अवस्थिति उत्तरापथमें और कुछ (२) वैकटियन देशकी राजधानी वलखके रूपमें स्वीकार करते हैं। पाणिनिके “वाहीकनामेभ्यश्य" (४।२।११७) तथा "आयुधजीविसंघाच्यड्वाहीकेश्वब्राह्मणराजन्यात्” (५३६११४) में वाहीक जनपदका उल्लेख आया है । इसे भाष्यकार पतञ्जलि पंजाबमें स्थित मानते हैं। इसकी अवस्थिति व्यास और सतलज नदियों के बीच निश्चित की गयी है । इस वाहीक राष्ट्रको शतपथ ब्राह्मणमें (१२।९।३।१-३) वाल्हीक कहा गया है। वाल्हीक लोग मूलतः वैक्ट्रियाकी राजधानी वलखके निवासी थे तथा भारतमें चिनाव और सतलज नदियोंके बीचके मैदान में बस गये थे। महाभारतके सभापर्वमें भी वाल्हीक लोगोंका वर्णन आया है और उनके प्रदेशको भी मूलतः बलख और बादमें भारत के उत्तर-पश्चिम भाग तथा पंजाबको माना है ।
कुछ विचारक वाल्हीकको अफगानिस्तानके उत्तरमें बतलाते हैं। पालि साहित्यमें वायि राष्ट्रका जो वर्णन आता है, उसकी दृष्टिसे इस राष्ट्रको व्यास और सतलज नदियों के बीच प्रदेश तक सीमित नहीं रख सकते । इस वर्णनसे यह राष्ट्र सिन्धु नदीके इस पार या उस पार भी संभव है। महारौलीके लोह
१. अशोक ( गायकवाड़ लेक्चर्स ), पृ० १६८. २. डॉ. मोतीचन्द्र : ज्योग्रेफोकस एण्ड इकोनोमिक स्टडीज इन दि महामारत, पृ. ९१. ३. भरतसिंह उपाध्यायः युद्धकालीन भारतीय भूगोल, प्रयाग सं. २०१८, पृ० ४८०. २८० : सीकर महावीर और उनकी वाचार्य-परम्परा