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स्तम्भ-लेखमें चन्द्रद्वारा सिन्धुके सात मुहानोंको पारकर बाल्हीकको जीतनका निर्देश किया गया है।
आदिपुराणमें प्रतिपादित वाल्हीककी स्थितिसे भी यह स्पष्ट है कि सिन्धुके पार उत्तर-पश्चिम महोश मना रहा है......... ... .. ..
तीपंकर महावीरका समवशरण इस जनपदमें गया था और यहाँकी जनता. ने उनका उदार हृदयसे स्वागत किया था। यवनति
यह प्रदेश यूनान और उसके पायवर्ती भूभागका द्योतक है । यूनानी लोग प्राचीन भारत में 'पवन' नामसे उल्लिखित होते थे। पश्चिमी भागोंमें यवन जनपदकी स्थिति सम्भव है । यों तो 'यवन' शब्दका प्रयोग आधुनिक यूनानके लिए पाया जाता है। महाभारतमें बताया गया है कि नन्दिनीने योनिदेशसे यवनोंको प्रकट किया तथा उसके पाश्वंभागमें यवन जातिकी उत्पत्ति हुई। कर्णने दिग्विजयके समय पश्चिममें यवनोंको जीता था। काम्बोजराज सुदक्षिण यवनोंके साथ एक अक्षौहिणी सेनाके लिए दुर्योधनके पास आया था। ___ यवन भारतीय जनपद है । यवन पहले क्षत्रिय थे, परन्तु ब्राह्मणोसे द्वेष रखने के कारण शूद्रभावको प्राप्त हो गये थे। आदिपुराणमें जिनसेनने (आदिपु० १६।१५५) बताया है कि तीर्थंकर ऋषभदेवने यवन देशकी प्रतिष्ठा की थी।
हरिवंशपुराण के अनुसार महानोरका समवशरण यवन प्रदेशमें गया था। सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहके सिद्धान्तोंका प्रतिपादन किया गया था । इस जनपदको जनताने श्रद्धा और भकिके साथ तीर्थकर महावीरका उपदेश सुना था। गान्धार
प्राचीन भारतके सोलह जनपदों में गान्धारका उल्लेख आया है। इस जनपदका निर्देश अशोकके पञ्चम अभिलेखमें भी पाया जाता है । मज्झिम-निकायको अट्ठकथामें गान्धार जनपदको सीमान्त जनपद कहा गया है। गान्धारको १. हॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री : आदिपुराणमे प्रतिपादित भारत, वर्णागम्यमाशा, वाराणसी,
पु० ६७. २. हिस्टॉरीकल लीङ्ग्-विस्, १० ७०-७८. ३. महाभारत, बादिपर्व १७४५३६-३७. ४. वही, वनपर्व २५४।१८।१५०. ५. वही, अनुवासन पर्व ३५।१८।१५२. १. मजिममनिकाय, जिरुप दूसरी, १० ९८२ (पपंचसूनी).
पीकर महादरीर बौर उनकी देशमा : २८१